Monday, November 29, 2010

शायद मैं बड़ा हो गया हूँ

-श्रीकांत मनु

रात को सोने के बाद
और सुबह जगने से पहले
चलती थी तब
ट्रेन
छुक-छुक कर
सीटी देकर
घर के सामने वाली सड़क पर
जिस पर चला करते थे
जीप, बस-ट्रक दिनभर।

लेदरे के नीचे
टेढ़ी टांग वाली एक झलंगी खटिया पर
हल्की नींद में
सुनाई पड़ती थी
तेज होती,
धीमी होती
सीटी की आवाज़
कभी पूरब से, कभी पश्चिम से,
मुझे पता था कि ये ट्रेन
मेरे सोने का इंतजार करती है
और जागने से पहले
चक्कर काटती रहती है
मेरे घर के चारों ओर।

सामने कुछ दूर
एक काले रंग का हाथी
बैठता था
सूँढ़ लिटाकर
बिना हिल-डुले, पत्थर-सा
सिर दिखता था बड़ा सुंदर,
सोचता था
उठता होगा
रात को सोने के बाद
और सुबह जागने से पहले।

मील भर दूर नदी की
कल-कल, छल-छल सुनाई पड़ती थी तब
आधी नींद में भी
पुआल पर बिछी एक ठंडी साड़ी पर,

सोचता था
छूती होगी उसकी लहरें
मेरे घर को रात को सोने के बाद
और सुबह जागने से पहले,
कभी-कभी तो लगता था
तैरेगा मेरा घर
पानी की लहरों पर
सुबह जगने के भी बाद।
पूरब के ओटे पर बैठकर
कलेवा करता था तब
टीन के कटोरे में,
और दिखती थी आसमान में
एक थाली से निकलती
कई रंग-बिरंगी थालियाँ
नाचती हुई
सुबह जगने के बाद।

अब रात आती नहीं कभी
सब सच साफ दिखता है
दिन के उजाले में,
वह सच
जो कभी रहा ही नहीं,
आज पता है
मुझे
बहुत दूर है
रेल की पटरी
उत्तर में,
पहाड़ी है एक
जो उठ नहीं सकती,
और एक पहाड़ी नदी है
जिसकी लहरें
छू नहीं सकती
मेरा घर कभी,
सूरज अब सूरज जैसा दिखता है
न थाल है, न रंग है
और न चकरी की तरह घूमता है,
शायद मैं बड़ा हो गया हूँ
सोचता हूँ
बड़ा होना भी क्या इतना जरूरी था?

(श्रीकांत मनु के नाम से लोकप्रिय श्रीमन्ननारायण शुक्ल सम्प्रति राजकीय इन्टर गोविन्द उच्च विद्यालय, गढ़वा, झारखण्ड में शिक्षक-पद पर कार्यरत हैं। अपनी अंदरूनी संवेदनाओं को शब्दों में बड़ी सूक्ष्मता के साथ पिरो ले जाने वाले श्रीकांत मनु की अनेकों कविताएँ, कहानियाँ और विचारोत्तेजक आलेख कई ख्यातनाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।)

1 comment:

Anonymous said...

चित्रों का संयोजन तथा प्रस्तुति आकर्षक है ॥

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...