Wednesday, November 24, 2010

राहुल जी, हर जिले-कस्बे में ‘एयरपोर्ट’ क्यों नहीं है...?


बिहार चुनाव में नेतागण आए तो फिर उसी तरह आए, जैसे पिछली दफा आये थे। राहुल गाँधी से लोगों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही थीं। लोगों को उड़नखटौला से अलग कुछ खास देखने की चाह थी लेकिन वो इस बार भी उसी तरह आये, जैसे पिछली दफा आये थे। अब लोगों के ज़ेहन में एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि राहुल जी, हर जिले-कस्बे में ‘एयरपोर्ट’ क्यों नहीं है...? दृश्य बदले जा सकते हैं लेकिन आँख तो नहीं बदले जा सकते न! और बदलेंगे भी तो कितनी आँखें बदलेंगे, भाई! करीब-करीब हर आँख में पीड़ा, चूभन और किरकिरी है। जनता के पास कहने के मौके कम हैं, सो उसकी आँखों ने जो देखा बस उसी को बेलागलपेट कह दिया है। आजकल तो अपनी पीड़ा सबके सामने कहना भी बाजारू विज्ञापन माना जाने लगा है। इसीलिए जनता की जुबान ज्यादातर बंद ही रहती है। कुछ खास तरह के अक्लमंद लोग ऐसे चुपाधारी जनता से कुछ बुलवा लेते हैं। फिर उसी को राजनीतिक चुनाव-प्रबंधन के तहत मंचासीन नेता के सामने पेश कर देते हैं। पुर्जा मिलते ही अमुक नेता के भाषण और बयानबाजी में गर्जन-तर्जन के भाव-बिंब बढ़ जाते हैं। तेवर आक्रामक हो उठते हैं और आवाज़ तल्ख़। अग्रिम पंक्ति में तालियाँ बजती हैं। शोर की भाषा में नारे लगते हैं। पीछे बैठी जनता उन तालियों को सुन-देखकर अचंभित होती है। जबकि उसके खुद के बोल और तालियों के थाप अंत तक संज्ञाशून्य बने रहते हैं। ये सारी बातें कोई रहस्य या तिलिस्म नहीं है। क्योंकि वर्तमान की राजनीति में रहस्यमय कुछ नहीं होता है। न चुनाव में और न ही चुनाव परिणाम में। दरअसल, जब किसी व्यक्ति का मोहभंग होता है तो सारी दुनिया ही उसे रहस्यमयी लगने लगती है। ऐसे में अब चाहे आप शून्य से शुरू कीजिए या सैकड़े से। गिनती की पहली शर्त है कि हर अंक की हैसियत आपको कंठस्थ हो। अन्यथा जैसे परीक्षा में पास-फेल का खेल जबर्दस्त है। उसी तरह राजनीतिज्ञों के भविष्य भी पलटी मार सकते हैं। अतः आधुनिक राजनीति के इस गणितीय समीकरण में सारे गोटी एकदम दुरुस्त और बिल्कुल फिट होने चाहिए।
जैसा कि कहा जा रहा है, पिछली सरकार ने बिहार में विकास के नाम पर लोगों को ठगा है, झाँसे में रख उनके आँख में धूल झाोंका है। सुन-सुनकर विवेकवान हुई जनता की विवेक जागी है वह राहुल गाँधी की प्रतीक्षा में है। अफसोस! वो आए भी, और चले भी गए। लेकिन कोई खास अंतर नहीं दिखा उनमें और अन्य पार्टियों में। बाँस-खंबे और बल्ले से छेंके मैदान की ओर देखते हुए राहुल गाँधी कहाँ सोच रहे होंगे कि जनता उनके लिए मैदान में घंटों खड़ी है। उन्हें सुनने को लालायित है। वहीं भीड़ में खड़ी जनता व्याकुल नेत्रों से अपने देश के भावी प्रधानमंत्री को किसी और निगाह से देख रही है। वह उनसे निवेदनपूर्वक यह कहने को सोच रही है कि अब आपको इस तरह जनता के बीच में सरेआम नहीं आना चाहिए। आप तो फिल्म ‘दबंग’ के लोकप्रिय गाने की भाँति ‘अमिया’ से ‘आम’ हो चले हैं। अर्थात खास से भी खासमखास। लिहाजा, राहुल गाँधी को जनता अपने बीच हवाई जहाज से आते हुए देखना चाह रही है। दिली-इच्छा है कि उनके जिला-शहर में राहुल गाँधी एक एयरपोर्ट बनवा दें। अभी तक किसी सरकार ने इस बारे में नहीं सोचा। जनता प्रज्ञावान है। उसे पता है कि राहुल गाँधी अगली बार वर्ष 2014 में फिर बिहार आएँगे। उस समय तक तो एयरपोर्ट बनकर अवश्य ही तैयार हो जाने चाहिए। वैसे यह राज्य-सरकार के बूते से बाहर की बात है। नहीं तो, बिहार में अद्भुत विकास का तमगा लिए फिर रही नीतीश सरकार खुद ही सारा कुछ ‘मैनेज’ कर देती। यों भी आजकल चुनावी प्रचार में उड़नखटौला यानी हेलीकॉप्टर से तो हर झंडुबाम नेता आ रहा है। ‘हर साल की भाँति इस साल भी’ की तर्ज पर भाषण दे रहा है और धूल उड़ाता गायब हो जा रहा है।

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...