प्रकृति:
‘‘तेज आँधी। चक्रवाती तुफान। लगातार बारिश। जलस्तर में वृद्धि। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र। ज्वालामुखी का भीषण लावा। राख से ढँकता आसमानी परत। बिजली, पानी और भोजन की अभूतपूर्व किल्लत। संचार नेटवर्क ध्वस्त। प्राकृतिक निर्वासन का दुख। जीवन अस्त-व्यस्त। दुनिया संकटग्रस्त।’’
स्त्री:
‘‘यौन हिंसा में वृद्धि। बाल यौन-शोषण का बढ़ता ग्राफ। एमएमएस कांड और साइबर सेक्स। हाइयर सोसायटी में स्त्रियों का देह-बाजार। परोक्ष वेश्यावृति पर जोर। शारीरिक और मानसिक चोट। स्त्रियों के लिए उसूल की सलाखें। अमानवीय प्रतिबंध। दोहरी जिन्दगी जीने को अभिशप्त महिलाएँ। पुरुष समाज में औरतों की स्थिति नारकीय। पितृसत्तात्मक वर्चस्व। ’’
समाज:
‘‘पारिवारिक बिखराव। अवसादपूर्ण अकेलापन। असीम अतृप्त इच्छाएँ। भोग-लिप्सा की संस्कृति। भागमभाग की आभासी दुनिया। स्वयं के सराहे जाने की महत्त्वाकांक्षा। अचानक ‘ब्रेकअप’। मानवीय कटाव, दुराव और छिपाव की बढ़ती प्रवृत्ति। चाय-कॉफी और हैलो-हाय की संस्कृति। उत्सवधर्मी जीवन से विमुख जीवन-परम्परा। लोक-भाषा, लोकवृत्ति और लोक-संस्कृति से पलायन। सामाजिक-सांस्कृतिक विरूपण और टेलीविजन संसार। न्यू मीडिया के फाँस से उपजी सूचनागत अनिवार्यता में जरूरी के सापेक्ष अनावश्यक शोर व कोलाहल ज्यादा। अन्तर्द्वंद्व और अन्तर्कलह की बादशाहत। सामूहिकता-बोध का लोप। सिकुड़ता सामाजिक-विन्यास।’’
प्रिय देव-दीप,
मुआफी! चहूँगा बेटे, जब तुम दोनों भ्रूण-रूप में माँ के गर्भ में पल रहे थे बारी-बारी से। आपसी अंतराल के दो-वर्षीय अंतर के बीच। उस घड़ी मैं तुम्हारी माँ के साथ जो सपने देख रहा था; वे यह नहीं थे। एक भी स्थिति आज से मेल नहीं खा रही हैं। फिर हमारे स्वप्न क्या थे? तुम्हारे आने की प्रतीक्षा में लिखी गई इबारतें कौन-सी थी? यह तो वे भी नहीं बता सकते हैं जो आज अभी-अभी मेरी तरह पिता बन जाने के गर्व से पुलकित होंगे; औरतें जो माँ बन जाने की सूचना से आह्लादित होंगी। जानता हँू इसके बाद तुम्हारा सवाल राजनीतिक भ्रष्टाचार को ले कर होगा। पूँजीगत नव्य बदलाव के दौर में तीसरी दुनिया में होने वाले आमूल परिवर्तन को ले कर होगा। एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के लिए नित घटते ‘स्पेस’ को ले कर होगा। ये दौर ही अंतहीन सवालों से घिरने का है। उन तक़रीरों को सुनने का है जिस सम्बन्ध में शायद ही पूर्व में सोचा हो।
फिलहाल, इस प्रश्न को उन्मुक्त छोड़ देते हैं। कोई तो होगा ही ऐसा जो मुझे तुम्हें बताने योग्य समर्थ सुझाव या मशविरा देगा.....,
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!
--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...
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यह आलेख अपने उन विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत है जिन्हें हम किसी विषय, काल अथवा सन्दर्भ विशेष के बारे में पढ़ना, लिखना एवं गंभीरतापूर्वक स...
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तोड़ती पत्थर ------------- वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तल...
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2 comments:
दृष्टि-सम्पन्न देव-दीप सौंदर्य भी तलाश लेंगे जीवन में और इस दृष्टि से उनके सुझाव और मशविरे आएंगे, बस आप थोड़ी प्रतीक्षा करें.
ma bap ka kam sir bachche ko janm dena hai.jindi me sare sawalo ka javab vo khud dhudh lenge,aaj tak tumhare bhi savalo ka javab tum ne khud dhudha hai fir apne bachcho ki hoshiyari per aise shak,ma bap ka kam sristi ko chachane ke liye janm dena,jeene wala bachca apne sawalo se jhujhate hua khud utter jan lega...bas bachche ke jhuchne ke tarike per dhyan dete rahana aur isha javab shayd koi nahi de sakta bas humari jijivisha de sakti hai
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