Saturday, April 12, 2014

इक्कीसवीं सदी, युवा और विश्वविद्यालय


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वर्तमान युवा-पीढ़ी भाव, उमंग, इच्छा, आकंक्षा, रूप, रंग, गंध, रस इत्यादि के उमाड़ पर है। यह उमाड़ जन-ज्वार की सामूहिक चेतना, साहस और युवा-शक्ति के पर्याय रूप में अभिव्यक्त है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी समस्याओं से लड़ती-भिड़ती यह पीढ़ी भारत के भविष्य का पीठ ठोकती पीढ़ी है। यह इक्कीसवीं सदी की ऊर्जावान, चेतस और परिवर्तनकामी पीढ़ी है जो इस घड़ी विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद है। अध्ययनजीवी यह पीढ़ी मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा हुई उन पीढ़ियों में से नहीं हैं जो नेता नहीं होते हैं; लेकिन नेतृत्व उन्हीं के हाथों में नित तरक्की पाता है। दरअसल, देश की असली शक्ति आज प्रोजेक्टेड/प्रमोटेड वंशवादी राजनेताओं का शिकार है। आज जिन युवाओं के पास राष्ट्रीय चेतना, विश्व-दृष्टिकोण और वैश्विक अर्थतंत्र की गहरी समझ है; वह हर जगह है लेकिन राजनीति में नहीं है। व्यक्ति, समाज, राजनीति और संस्कृति से सम्बन्धित गहन विश्लेषण की क्षमता भी इस विश्वविद्यालयी पीढ़ी में अंतर्भूत है; लेकिन वे राजनीति में ‘इंटरेस्टेड’ नहीं दिखते हैं।

हमें देखना होगा कि विश्वविद्यालय में रोपी जा रही यह पीढ़ी अपनी संभावनाओं की तलाश में आकाश की ओर ताकती अवश्य है; लेकिन, वह सिर्फ आकाशमार्गी नहीं है। वह अपने विपरीतलिंगी के साथ हवाबाजी-गपबाजी सबकुछ कर लेने को आतुर है; लेकिन वह ‘देवदासवादी’ नहीं है। यह पीढ़ी भारत की निष्कलुष मनोवृत्तियों, अंतःप्रवृत्तियों के साथ जन्मी और जवां हुई संघर्षशील पीढ़ी है। यह विश्वविद्यालयी पीढ़ी अपने समय के सवालों और ज्वलंत मुद्दों को पुस्तकबाज आँकड़ों में उल्लेखनीय बनाने की बजाए उन्हें विचार के बरास्ते सही, सार्थक और स्वालंबी नेतृत्व देना चाहती हैं। यह युवा पीढ़ी ‘प्रोपेगेण्डा अट्रैक्ट’ की खोखली राजनीति को ‘पब्लिक इन्टरेस्ट’ की सशक्त राजनीति में बदलना चाहती है।

देश की ताजी बयार जिस दिलोदिमाग में बह रही है, वह पीढ़ी युवा है। इस पीढ़ी की उम्र को युवा तुर्क के जमाने से नापें, तो देशी चैहद्दी में सयानी हुई यह हमारी राजनीतिक-जनतांत्रिक पीठ की तीसरी पीढ़ी है जो साधिकार राजनीति में प्रवेश, दखल और प्रतिनिधित्व की माँग कर रही है। इस पीढ़ी को यथास्थितिवादी फटा-सुथऽना पहनकर जीना स्वीकार्य नहीं है। यह पीढ़ी लिंग, धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा इत्यादि के भुलावे या झाँसे में पड़ने के बजाए अपना हाथ जगन्नाथ स्वयं करना चाहती है। संभावित चेतना से लकदक यह जिन्दादिल पीढ़ी ‘भूख’ पर राजनीतिक भाखा बोलने वालों को तत्काल उसी की भाषा में ‘शेटअप’ और ‘गेटआउट’ कहना जानती है। सच के बारे में सलीके से सोचने वाली यह पीढ़ी जुझारू है, जुनूनी है और जज्बाधारी भी। ध्यान देना होगा कि आवेपूगर्ण ओज और तेज से पूरित यह किशोर से युवा होती पीढ़ी प्रेम में पड़ती है, लेकिन स्खलित होती ही हो; यह जरूरी नहीं है। आजकल जिस तरह का कईकिस्मा प्रेम चलन में है, प्रेम के बेचदार बाज़ार में मौजूद हैं; उससे तो यही लगता है कि प्रेम और युद्ध में युवा प्रेम को चुनने के लिए बाध्य है।

अतः वर्तमान नवयुवक पीढ़ी 21वीं सदी की विश्वसनीय पीढ़ी है जो अपने समय के अंतर्विरोधों, विरोधाभासों, गतिरोधों, गतिविधियों इत्यादि से पूर्णतया अवगत है। इस पीढ़ी का अपनी पुरानी पीढ़ी से रिश्ता सामान्य है, बेमेल नहीं है। अस्तु, यह पीढ़ी उनका मुखालफत कम उनसे तहकिकाती भाषा में जवाबतलब-बहसतलब ज्यादा कर रही है। इस पीढ़ी को मंच से भूख पर भाषण देने वाले कतई पसंद नहीं हैं। इसलिए वह अपनी उम्र के युवा राजनीतिज्ञों को ‘भूख सत्याग्रह’ के लिए सीधे देशी चैराहे पर खड़ा करना चाह रही है। गोकि वर्तमान युवा पीढ़ी के पास जनतांत्रिक-विकल्प की त्वरा, साहस और शक्ति विद्यमान है। यह पीढ़ी सम्प्रदायीकरण, धार्मिकरण, जातिकरण, क्षेत्रीरकण, तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण आदि गठबंधनों-गठजोड़ों से पूर्णतया मुक्त है। इस पीढ़ी के लिए ‘रोल माॅडल’ अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, जापान, रूस और फ्रांस जैसे नवसाम्राज्यवादी मुल्क नहीं हैं। अर्थात् ‘विश्वसनीय भारत’ के निर्माण में दृढ़संकल्पित हम उस पीढ़ी की बात कर रहे हैं जो यह सिद्ध कर देना चाहती है कि वह अपने मुल्क का मालिक भी खुद है और वारिस भी खुद।

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...