Monday, April 7, 2014

आज 07.04.14


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आज दूध फट गया। गर्मी काफी है, इस कारण। सीमा ने उसे अपने ओढ़नी में बांधकर दरवाजे से टांग दिया। नीचे बाल्टी में पानी गिर रहा था-ठप, ठप...। मैं, सीमा, देव और दीप ने साथ बैठकर छेना की सब्जी और भात खाया। बड़ा ही स्वादिष्ट। कहा, चलो...कुछ तो अच्छा हुआ। बिटना(दीप) तो अपनी थाली में से बिन-बिन कर चट कर गया छेना का टुकड़ा। देव उस पे गुस्सा हो रहा था। सीमा ने कहा कि जाने दो बच्चा है। फिर उसने मुझे चिढ़ाया-तब आपका चाय कल कैसे बनेगा? मैं मुसकरा दिया।

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...