Saturday, April 12, 2014

राजनीति, जनतंत्र और युवा

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भारत में राजनीतिक पराभव का यह विषम दौर है। लोकतंत्र के मजबूत पाये खड़े-खड़े ऊंघ रहे हैं। हाल के दिनों में अभद्रता, अवमानना, अन्याय, अपराध, असंगति आदि की घटनाएँ इफरात मात्रा में बढ़ी हैं। वर्चस्व और प्रभुत्तव की वर्तमान राजनीति ने लोकतंत्र की चादर को मैला कर दिया है। हिंसा और दंगे लोक-समाज के धु्रवीकरण, तुष्टिकरण, एकरूपीकरण आदि का जरिया बन चुकी है। लिहाजा, साम्प्रदायिक शक्तियाँ सिर्फ एकजुट ही नहीं हो रही हैं बल्कि अंधे धृतराष्ट्र की भाषा में आत्ममुग्ध वसीयतनाता लिखने पर भी आमादा हैं। वहीं धर्मनिरपेक्षता का नकाब और जुराब पहनी देश की कमोबेश सभी पाटियाँ वैचारिक एकजुटता का भौड़ा प्रदर्शन करते हुए लगातार देश की अस्मिता-बोध को चुनौती दे रही हैं; उपभोक्ता-संस्कृति के सांस्कृतिक-दुराचार के आगे घुटने टेक रही है। लेकिन, यह भी सच है कि इनसे टकराने वाली समूह को भी इस कठिन समय ने ही सिरजा है। प्रतिरोध और प्रतिकार की उर्वर जमीन बनाने में समय की इन दुरभिसंधियों का योग अधिक है। भारतीय जनमाध्यम जिसकी भाषा में छल करना सर्वाधिक आसान है। इस घड़ी जनता-जर्नादन के पक्ष में महमह करती दिख रही है। भारतीय राष्ट्रीय कांगेस और भाजपा के बरक़्स आम-आदमी पार्टी को हासिल प्रचार और लोकप्रियता कहीं न कहीं इसके महत्त्व को सही साबित करते हैं। ऊँची नाक वाले राजनीतिक विशेषज्ञों और विश्लेषकों की मानें तो सबने एकमत घोषणा कर रखी है-‘भारतीय राजनीति का यह समय युवा-समय है। वह जाग गया, तो देश बदल जाएगा।’ हम इन ऊँची नाक वाले राजनीतिक विशेषज्ञों और विश्लेषकों के कहे को सच होते हुए देखना चाहते हैं।

यह बात विश्वास योग्य है। भारतीय युवाओं के बारे में सोच का सामाजिक भूगोल तेजी से बदला है। बदलाव की यह पुरवाई युवा चिन्तन, नेतृत्व और दृष्टिकोण में परिलक्षित होता हुआ भी दिखाई दे रहा है। भारत का युवा वर्ग बहुसंख्यक है; बहुगुणधर्मी हैै। राजनीति से दूर भागने वाले युवाओं के विपरीत युवाओं का एक वर्ग ऐसा भी है जो राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला चेतस और जवाबदेह युवा है। परिवर्तनकामी राजनीतिक प्रवृत्तियों को वह सिर्फ सराह ही नहीं रहा है, बल्कि स्वीकार भी कर रहा है। आज भारतीय युवा कई मोर्चे पर लगातार जनतांत्रिक लड़ाई लड़ रहा है। स्वयं को अवसरवादी, पलायनवादी और समझौतापरस्त कहा जाना उसे पसंद नहीं है। वह मुक्कमल बदलाव के लिए हर छोटे-बड़े मौके को एक संभावना के रूप में चिह्नित कर रहा है। हमारी दृष्टि में विपरीतलिंगी साथी के साथ चैट करता, डिश चखता, डांस करता युवा....देश का मुकद्दर बदलने वाला युवा भले न हो; लेकिन देश का असली युवा असंगठित रूप से पूरे देश में बिखरा है। उसकी संख्या गिनती में देश की पूरी आबादी के शीर्ष पर अंकित है।

क्या इस सच से आपका साबका पड़ा है? क्या आप भारतीय विश्वविद्यालयी युवा को इसी आँख से देखते हैं? क्या आप मानते हैं कि आज हर किस्म का जोखिम उठाता यही हुआ कल की तारीख में बड़े परिवर्तन का इतिहास लिखेगा? क्या आप इस विश्वास से भरे हुए हैं कि पतियों का रंग जब तक हरा है...उसमें क्लोरोफिल होने की संभावना सौ-फीसदी है? यदि हाँ, तो हरेपन से भरे इस युवा पीढ़ी के बारे में गोया आपका क्या ख्याल है?

भारतीय युवा राजनीति में ताजगी, स्फूर्ति, आवेग, लय, स्वर, भाषा सबकुछ है...और सब बहुवचन में है। अतः विषय, सन्दर्भ और प्रसंग विचारणीय बनता ही है।

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