Saturday, December 27, 2014

ओह! प्रोमीथियस मुझे तुम्हारे मन की व्यथा-कथा कहनी है

दैवीय-सत्ता के अमानुष और बर्बर
 होने 
की 
प्रतीकात्मक नाट्य 
का 
पुर्नपाठ
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समकाल के बरास्ते एक मनोवैज्ञनिक: मनोभाषिक पड़ताल
राजीव रंजन प्रसाद




no wait pls...!
it's personal write up

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...