परआदरणीय महोदय/महोदया,
भवदीय
राजीव रंजन प्रसाद
सादर-प्रणाम!
मेरा
शोध-कार्य संचार और मनोभाषाविज्ञान के अंतःसम्बन्ध पर है। मैं युवा
राजनीतिज्ञों के संचारक-छवि और लोकवृत्त के अन्तर्गत उनके व्यक्तित्व,
व्यवहार, नेतृत्व, निर्णय-क्षमता, जन-लोकप्रियता इत्यादि को केन्द्र में
रखकर अनुसन्धान-कार्य में संलग्न हूं। मैंने अपने व्यक्तिगत प्रयास से अपने
शोध-विषय के लिए हरसंभव जानकारी जुटाने की कोशिश की है। जैसे मनोविज्ञान
के क्षेत्र में सैकड़ों मनोविज्ञानियों, मनोभाषाविज्ञानियों,
संचारविज्ञानियों, समाजविज्ञानियों, राजनीतिविज्ञानियों, नृविज्ञानियों आदि
को अपनी जरूरत के हिसाब से टटोला है, जानने-समझने की कोशिश की है। लेकिन
भारतीय सन्दर्भों में ऐसे अन्तरराष्ट्रीय जानकारों-विशेषज्ञों का मेरे पास
भारी टोटा है। अर्थात जितनी आसनी से हम कैसिरर और आई. ए. रिचर्डस का नाम ले
लेते हैं; फूको, देरिदा, एडवर्ड सईद, ज्यां पाॅल सात्र्र को अपनी बोली-बात
में शामिल कर लेते हैं वैसे हिन्दुस्तानी ज्ञानावलम्बियों(जिनका काम
उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी में उल्लेखनीय रहा है और जिन्हें भारतीय अकादमिक
अनुशासनों में विषय-विशेषज्ञ होने का विशेषाधिकार प्राप्त है) की
हिन्दीपट्टी में खोज बहुत मुश्किल है। ऐसे में मुझ पर यह आरोप आसानी से
आपलोग मढ़ सकते हैं कि मेरी निर्भरता मनोविज्ञान को समझने के लिए फ्रायड,
एडलर, युंग, नाॅम चाॅमस्की पर अधिक है; भारतीय जानकारों-विशेषज्ञों पर कम।
इसी तरह अन्य विषय अथवा सन्दर्भों में भी आपलोग यही बात पूरी सख्ती से
दुहरा सकते हैं। अतः अपने शोध-कार्य की वस्तुनिष्ठता प्रभावित न हो इसलिए
मैं आपको अपने शोध-कार्य में एक सच्चे शुभचिंतक के रूप में शामिल कर रहा
हूं। आप के सहयोग पर हमारी नज़र है। कृपया आप मेरी मदद करें और सम्बन्धित
जानकारी निम्न पते पर प्रेषित करें:
ई-मेल द्वारा : rajeev5march@gmail.com
या फिर डाक से
उपलब्ध करायें: राजीव रंजन प्रसाद; हिन्दी विभाग; काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय; वाराणसी-221 005
आप मेरे कार्य-क्षेत्र के दायरे में इज़ाफा कर सकें इसी प्रत्याशा में;
सादर,
आप मेरे कार्य-क्षेत्र के दायरे में इज़ाफा कर सकें इसी प्रत्याशा में;
सादर,
भवदीय
राजीव रंजन प्रसाद
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