नारा लोकेश, पुत्रः चन्द्रबाबू नायडू; चित्रः साभार |
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राजीव रंजन प्रसाद
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राजीव रंजन प्रसाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में
युवा राजनीतिज्ञ संचारकों के व्यक्तित्व, व्यवहार एवं नेतृत्व से सम्बन्धित संचारगत प्रणाली एवं मनोभाषिक अनुक्रिया-अनुप्रयोग सम्बन्धी सम्बद्धता पर शोध-कार्य कर रहे हैं।
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नेता चन्द्रबाबू नायडू के बेटे की हैसियत यह है कि वे अमरिका में पढ़े-लिखे हैं; लेकिन योग्यता इस काबिल भी नहीं कि अपने देशवासियों और गरीब जनता के लिए कोई नवाचार आधारित स्वउद्यमिता कार्यक्रम शुरू कर सकें। जो एनजीओ टाइप न हो। जिसमें लूट-खसोट की समाज-सेवा का दिखावा न हो। हर आदमी के साथ इस प्रयास में तत्पर लोगों द्वारा ऐसा बर्ताव हो कि लोगों के चेहरे खुशी से दमके और प्रसन्नता से लैस नज़र आए; लेकिन विदेशी ‘स्कूलिंग’ भी भारतीय विश्वविद्याालयों की तरह ही अनुपयोगी हो चली हैं। अतः अमेरिका के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किए नारा लोकेश राजनीति करेंगे। वंशवाद की बेल बजाएंगे। अपने पिता के नाम का सिक्का अपने पाॅकेट में धरेंगे। जगन रेड्डी की तरह यह भी सड़क से संसद तक गरजेंगे, तड़केगे और भड़केंगे।
ओह! लोग कैसे कहते हैं कि विश्व की टाॅप रैंकर यूनिवर्सिर्टियां अमेरिका में हैं; यह चिन्तन, विचार एवं दृष्टि के स्तर पर उच्चतस्तरीय मानक एवं मानदंड को साबित करती हैं। यदि ‘अमेरिकी दरजे’ में शिक्षित होना भी भारतीय विश्वविद्यालयों से डिग्रीधारी युवाओं की तरह ही अकुशल, अयोग्य या नाकाबिल होना है, तो अच्छा है कि हम हिन्दुस्तानी पाठशाला में पढ़ें और और उसमें ही अपेक्षित एवं अनिवार्यतम सुधार करते हुए
सौ-फीसदी हिन्दुस्तानी बनकर अपने लोगों के विकास, समृद्धि एवं सम्पन्नता के बारे में कार्य-व्यवहार एवं नेतृत्व करें।
अपने पास विदेशी डिग्री का ढकोसला; व्हाॅट नाॅनसेंस!!!
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