Wednesday, May 27, 2015

घड़ी

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एक दिन दीवाल घड़ी के सेकंड की सुई टूट गई। मेहरारू ने देखा कि मैं उसकी चिंता में शामिल नहीं हूं; उसके ‘समय’ पर ध्यान नहीं दे रहा हूं, तो उसने झाड़ू की सींक नापतौल के हिसाब से घड़ी में फिट कर दी। बड़ी कलाकारी; घड़ी चलने लगी।

अब कोई भी समस्या आती है, तो वह कहती है; उनसे मत कहिए वे वेद लिख रहे हैं। अपने सर से भी अधिक ज्ञानी समझते हैं खुद को। उनको गंगा नहाने दीजिए।
आप अपनी समस्या का हल मुझसे पूछिए।

वाह! मेहरारू राम!वाह!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...