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R=Rahul Gandhi
N=Narendra Modi
A=Arvind Kejriwal
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मैंने कहीं पढ़ा
था-विज्ञान मनुष्य की प्रकृति नहीं है क्योंकि वह ज्ञान और प्रशिक्षण भर
है। भौतिक जीवन के नियम जान लेने के बाद भी आप अपनी गहन मानवता को बदल नहीं
लेते। आप दूसरों से ज्ञान उधार ले सकते हैं लेकिन आप स्वभाव नहीं ले सकते।
हर व्यक्ति की भाषा नितांत वैयक्तिक होती है। उसका व्यवहार तमाम समानताओं
और सुमेलित नज़र आने के बावजूद भिन्न होता है। बस इसे जानने-देखने R=Rahul Gandhi
N=Narendra Modi
A=Arvind Kejriwal
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की इच्छा, प्रवृत्ति और मनोभाव हम में चाहिए।
यह आलेख राहुल, अरविन्द और नरेन्द्र पर है जिन्हें जनता ‘मास-लिडर’ कहते नहीं अघा रही है। लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि हम नेताओं को देवताओं की तरह पूज रहे हैं। लेकिन क्योंकर? यह भी तो जानें...!
आइये, इनके भाषणों/बोलियों/उवाचों की तलाशी लें। उनके चुनावी बोल की तलहटी का ज़ायज़ा लें। यह जानें कि आखिर यह ‘RNA' लोकतंत्र कितना सच्चा, जनसंवेदी और जनपक्षधर है। लोकप्रचारित और मीडिया द्वारा खड़े किये गए इन चुनावी वारिसों(राहुल गाँधी, नरेन्द्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल) में वास्तव में कितना दमखम है; जीवन, संवेदना और विश्व-दृष्टिकोण है।
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