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इस बार नरेन्द्र मोदी का सत्ता में आना तय है। यह भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत है। नरेन्द्र मोदी बाबा आसाराम की तरह नैतिक पतनशीलता के शिकार नहीं हैं। उनकी संकल्पशीलता बेजोड़ है। वह जो कर नहीं सकते उसे वह अपने मुख से कभी नहीं कहते हैं; जबकि कांगे्रस बड़बोलेपन की शिकार पार्टी है। यह कहते और अपना सीना ठोंकते लोग आज की तारीख में बनारस में हर जगह मिल जाएंगे।
पिछले दिनों दिसम्बर में वाराणसी महारैली को सम्बोधित करने से पूर्व उन्होंने मजे की बात कही थी-‘‘मैं अपने दिमाग को पक्का करने के लिए संकटमोचन और बाबा विश्वनाथ का माथा नवाकर आया हूँ; और सत्ता में आया भाइयो और बहनो तो अपने पक्के ज़बान की सिद्धि हो जाने के बाद ही आप सभी के सामने दोबारा उपस्थित होऊंगा और इसी काशी नगरी में अवस्थित भारत माता मन्दिर का माथा टेकूँगा। उस दिन पूरे देश को मालूम चलेगा, चाय बेचने वाला नरेन्द्र मोदी आज वह सबकुछ कर रहा है जो पिछले प्रधानमंत्रियों ने न किया और न ही करना चाहा। यह कांग्रेस जो चुनाव नजदीक आते ही ‘गरीब, गरीब, गरीब....’ का माला जपने लगती है; अब उसकी विदाई तय है। क्योंकि अब जनता को भाषण नहीं भरोसा चाहिए। झूठे संकल्प नहीं सचमुच विकल्प चाहिए। एक ऐसी सरकार जिसके होने पर गर्व हो; नाम लेने पर गर्व हो....,’’
सवाल उठता है कि इन दावों का आधार क्या है? अगर मोदी सरकार प्याज की दर सस्ती कर दे, तो क्या जनता उनसे बस इतना ही चाहती है? गैस सिलिण्डर के दाम घटा दे या कि उसकी सलाना देने की निश्चित संख्या को बढ़ाकर कुछ अधिक कर दे, तो क्या देश की जनता बस यही हो जाने से संतुष्ट हो जाएगी? अगर नहीं तो आखिर जनता की मोदी सरकार से अबकी बार उम्मीदें क्या है? क्या मोदी सरकार की सफलता इरोम शर्मिला की माँग मान लिए जाने में है? शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से सम्बन्धित दूरगामी नीतियों को बहाल किए जाने में है? पूँजी-सत्ताओं का प्राकृतिक संसाधनों की लूट और आदिवासी-अस्मिता की समस्या को बड़ी गहराई और शिद्दत के साथ हल किए जाने में है? या मोदी सरकार की सफलता इस बात में है कि वह अपनी रणनीतिक पहलकदमियों के द्वारा विश्व-बिरादरी में स्वयं को कैसे प्रस्तुत करते हैं और कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं?.....
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