Friday, March 28, 2014

Jean Paul Sartre की आत्मकथा The Words के अंश

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संस्कृति किसी चीज या व्यक्ति की रक्षा नहीं करती। न यह कोई औचित्य प्रमाणित कर सकती है। लेकिन यह मनुष्य से उत्पन्न एक चीज है। मनुष्य इसमें अपने व्यक्तित्व को स्थापित  करता है, इसमें अपने को देखता है। यही एक शीशा है जिसमें वह अपनी छवि देख सकता है। मैं ईमानादारी से कह सकता हूं कि मैंने सिर्फ अपने समय के लिए ही लिखा है

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...