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संस्कृति किसी चीज या व्यक्ति की रक्षा नहीं करती। न यह कोई औचित्य प्रमाणित कर सकती है। लेकिन यह मनुष्य से उत्पन्न एक चीज है। मनुष्य इसमें अपने व्यक्तित्व को स्थापित करता है, इसमें अपने को देखता है। यही एक शीशा है जिसमें वह अपनी छवि देख सकता है। मैं ईमानादारी से कह सकता हूं कि मैंने सिर्फ अपने समय के लिए ही लिखा है
संस्कृति किसी चीज या व्यक्ति की रक्षा नहीं करती। न यह कोई औचित्य प्रमाणित कर सकती है। लेकिन यह मनुष्य से उत्पन्न एक चीज है। मनुष्य इसमें अपने व्यक्तित्व को स्थापित करता है, इसमें अपने को देखता है। यही एक शीशा है जिसमें वह अपनी छवि देख सकता है। मैं ईमानादारी से कह सकता हूं कि मैंने सिर्फ अपने समय के लिए ही लिखा है
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