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1. चुनाव के समय सभी मुद्दों की बैल हाँकते है; सवाल है, इतनी ताजगी और
फुर्ती वाले नेतागण जनता की सुधि तब क्यों नहीं लेते जब उन्हें जनता
बहुमत से अपना जनप्रतिनिधि चुन लेती है; फिर मुद्दों को प्राथमिकता क्यों
दे जनता?
2. मीडिया जिस पर जनता की आँख टिकी होती है; भरोसे का जिसे वह रोशनी
मानकर चैबीसों घंटे देखती-सुनती है; वह सच के आइने में सही मुद्दे को सही
ढंग से उठाने वाले जनप्रतिनिधियों के बारे में क्यों नहीं कुछ कहती-सुनती
है? ऐसे लोगों के बारे में जनपक्षधर अभियान क्यों नहीं चलाती है; ताकि
चेहरे और नाम से छल करते लोगों को उनकी असली हैसियत का पता चल सके?
3. आपका यह प्रश्नकाल हमारे कहे का जो शब्द रिकार्ड कर रहा है उसी तरह
लोकसभा के प्रश्नकाल को हमारी आवाज़ सुनने और उसे वहाँ सुसंगत तरीके से
पेश करने के लिए जनप्रतिनिध आगे क्यों नहीं आते हंै?
4. क्या सांसद/विधायक चुने जाते राजनीतिज्ञों को अपने क्षेत्रवासी जनता
के घर-द्वार और ठौर-ठिकाने का पता है, उनकी जरूरतों का होश है, उन सपनों
की परवाह है जिसे आमजन द्वारा सिर्फ देखा जा सकता है, साकार कर पाने की न
तो उनमें कुव्वत है और न ही सरकारी इच्छाशक्ति?
5. आज देश की जनता अपनी निजी ज़िन्दगी में केवल एडजस्ट करना जानती है...इस
जनता को जब रूलाई आती है, या कोई दुःख तकलीफ होती है तो वह किसी राजनीतिक
चेहरे को नहीं याद करती है; किसी की अराधना अथवा स्तुति नहीं करती है?
विनोद दुआ जी, आपको भी नहीं।
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1. चुनाव के समय सभी मुद्दों की बैल हाँकते है; सवाल है, इतनी ताजगी और
फुर्ती वाले नेतागण जनता की सुधि तब क्यों नहीं लेते जब उन्हें जनता
बहुमत से अपना जनप्रतिनिधि चुन लेती है; फिर मुद्दों को प्राथमिकता क्यों
दे जनता?
2. मीडिया जिस पर जनता की आँख टिकी होती है; भरोसे का जिसे वह रोशनी
मानकर चैबीसों घंटे देखती-सुनती है; वह सच के आइने में सही मुद्दे को सही
ढंग से उठाने वाले जनप्रतिनिधियों के बारे में क्यों नहीं कुछ कहती-सुनती
है? ऐसे लोगों के बारे में जनपक्षधर अभियान क्यों नहीं चलाती है; ताकि
चेहरे और नाम से छल करते लोगों को उनकी असली हैसियत का पता चल सके?
3. आपका यह प्रश्नकाल हमारे कहे का जो शब्द रिकार्ड कर रहा है उसी तरह
लोकसभा के प्रश्नकाल को हमारी आवाज़ सुनने और उसे वहाँ सुसंगत तरीके से
पेश करने के लिए जनप्रतिनिध आगे क्यों नहीं आते हंै?
4. क्या सांसद/विधायक चुने जाते राजनीतिज्ञों को अपने क्षेत्रवासी जनता
के घर-द्वार और ठौर-ठिकाने का पता है, उनकी जरूरतों का होश है, उन सपनों
की परवाह है जिसे आमजन द्वारा सिर्फ देखा जा सकता है, साकार कर पाने की न
तो उनमें कुव्वत है और न ही सरकारी इच्छाशक्ति?
5. आज देश की जनता अपनी निजी ज़िन्दगी में केवल एडजस्ट करना जानती है...इस
जनता को जब रूलाई आती है, या कोई दुःख तकलीफ होती है तो वह किसी राजनीतिक
चेहरे को नहीं याद करती है; किसी की अराधना अथवा स्तुति नहीं करती है?
विनोद दुआ जी, आपको भी नहीं।
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