Monday, January 26, 2015

भारतीय नेता प्रधानमंत्री हैं, ओबामा हमारे ‘गाॅडफादर’ नहीं हो सकते!

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अकूत पैसे और सुविधाएं मिलने पर भी बुद्धिजीवियों के लिए वैचारिक नंगापन नामुमकिन है!
यह अलग बात है कि हमारे पास बुद्धिजीवी हैं कितने?
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 राजीव रंजन प्रसाद 

लेफ्टिनेंट हडसन फिरंगी था। यह वही शख़्स था जिसने बहादुर शाह जफ़र के दोनों पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया था। सन् सनतावन की पराजय ने मुगल बादशाहियत के अंतिम नायक बहादुर शाह जफ़र को लगभग निहत्था कर दिया था। शासक की इस स्थिति पर हडसन ने उसका माखौल उड़ाते हुए कहा था-
‘दमदमे में दम नहीं, अब खैर मांगो जान की/ ऐ जफ़र ठंडी हुई शमशीर हिन्दुस्तान की।’ 
जफ़र का उस समय कहा बड़बोलेपन और झूठी शान की निशानी मानी गई थी, जफ़र का जवाब था-
‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की/तख़्ते लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की।’
विश्व-भूगोल में इन दिनों लंदन की हैसियत अमेरिकी ताकत के आगे बौनी है, तो क्या यह मानें की आज भारतीय बुलंदी की गूंज अमेरिका पूरे धैर्य के साथ सुन रहा है और उसका सर्वशक्तिमान राष्ट्राध्यक्ष भारतीय प्रधानमंत्री के साथ कहकहे लगाने में मशरूफ़ है। आज मोदी बराक ओबामा के संग-साथ गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं। ...तो क्या भारतीय जनमानस को नाहक चिंताओं और अपनी जिंदगी के जद्दोजहद के बीच भविष्य के फिक्र से मुक्त हो जाना चाहिए। यह सोचते हुए कि हमारे देश का नेतृत्व और आलाकमान उस अमेरिका के साथ बराबरी पर खड़ा है जिसके राष्ट्राध्यक्ष के समक्ष खड़े होने के लिए ठोस व्यक्तित्व होना जरूरी है। टेलीविज़न के अपने बयान में बराक ओबामा मोदीजी की तारीफ़ ही नहीं करते हैं; बल्कि जादू ऐसा कि वह अपनी पत्नी मिशेल ओबामा तक को ‘फैशन आइकाॅन’ के मामले में दूसरे पायदान पर रख रहे हैं। उनके मुताबिक दुनिया को फैशन का पहला सितारा मोदी के रूप में मिल गया है। दोनों एक-दूसरे को हमनाम सम्बोधन के साथ पुकार रहे हैं। यारीपन का बेमिसाल दौर टेलीविज़न पर देखते हुए मुझे तो यह लगने लगा है कि आज के ज़माने में ऐसा मित्र भाग्यशालियों को ही मिलते हैं; तो क्या मोदी भाग्यशाली हैं? क्या यह कमेस्ट्री भारत की बदहाल भौतिकी और गणित(भूख, गरीबी, निम्न स्तरीय अशिक्षा, भाषा-वर्चस्व, चिकित्सा-सुविधा, पेयजल संकट, बिजली, पर्यावरण, उन्नत प्रौद्योगिकीगत समझौते, सैन्य करार आदि के मसले को स्वयं में समेटे हुए) को आमूल-चूल बदल देंगी।

ईमानपेश मीडियाविदों और देश के समाजविज्ञानियों और राजनीतिक विश्लेषकों से राजनीति के इस नए हुक्केबाजी या दोस्ताना अंदाज पर आगे-पीछे नहीं तत्काल प्रकाश डालने की दरख़्वास्त है। ताकि हम सच को एक वस्तुनिष्ठ और प्रायोगिक व वैज्ञानिक प्रक्रिया एवं विश्लेषण के तहत देख सकें; उनका मूल्यांकन कर सकें और देश की अपनी बड़ी आबादी के लिए एक सफल संदेश दे सकें। अगर सचाई इन दृश्योंमें कूट-कूट कर भरी है तो यह जागरूक और शिक्षित लोगों का पहला कर्तव्य है कि वे अपनी जनता को सबकुछ साफ-साफ बताएं। उन्हें बताएं कि टेलीविज़न पर उतरा चेहरे का यह रंग सिर्फ तकनीकी करिश्मों का नतीजा/परिणाम नहीं है; बल्कि पूर्णतया समावेशी तथा सर्वजनीन विकास पर केन्द्रित है। जल्द ही मुल्क में नया स्वराज आएगा; अच्छे दिन की घड़ियां टिक-टिक करेंगी; और अमेरिका की तरह हम भी अपनी बड़ी आबादी की महत्त्वाकांक्षाओं को नई क्षितिज प्रदान करेंगे। यह खास और विशेष ‘सिविल सोसायटी’ के लिए शर्तिया अवसर पैदा करने के विपरीत सब हाथों को काम देगा और विकास की नई सुनहली इबारत लिखेगा। बुद्धिजीवियों से आग्रह है कि वे शब्दों की हेराफेरी कर देश की जनता को बरगलाकर राजनीति करने वालों से दूर रहने को कहें या उनकी दलीलों पर विश्वास न करने की उनमें सप्रयास जागरूकता पैदा करें। आज का वर्तमान परिदृश्य जितना रोमांचक और अतिशय सुखदायी प्रतीत हो रहा है, तो कल के लिए भी ऐसी आश्वस्ति की जा सकती है या नहीं उसका आप मूल्यांकन करें, उस पर सीधे संवाद और चर्चा-परिचर्चा करें। पूरी दुनिया को यह जताएं कि यह कमेस्ट्री जनता की जीवनरक्षक मिशनरी तैयार करने में जुटी है; न कि उसके लिए जहरीले गैस का टैंकर खड़ा करने का मन बना रही है। 
 
यदि आप आज की तारीख में यह नहीं कर सकें; उपर्युक्त बाते सही तरीके से नहीं बता सकें या उन्हें अपने भरोसे में ले सके; तो निश्चय जानिए कि आपका ज्ञानवान और मार्गदर्शक होने का पाखंड और अधिक दिन नहीं चलने वाला है। आपके प्रतिमान निष्फल होने वाले हैं; और आप कृतध्न शासक से पहले देश की जनता द्वारा शापित होंगे। 
 
अभिव्यक्ति का सांविधानिक अधिकार प्राप्त देश के पढ़े-लिखें और जागरूक लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि सावधान-मुद्रा में मुर्गे भी बांग नहीं देते; हम तो इंसान हैं।
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

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