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New Approach of Natural Science
New Approach of Natural Science
By
राजीव रंजन प्रसाद
गणित हमारे लिए कठिन है, और जटिल भी।
हममें से कितने हैं जो 5 को बाइनरी में बदलना जानते हैं या कि बाइनरी से अंक में बदलने के सूत्र से अवगत हैं; लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप कंप्यूटर ही नहीं चला सकते या स्मार्ट फोन पर ‘मैसेजिंग’ नहीं कर सकते। यह एक-दूसरे से अभिन्न होते हुए भी व्यावहारिक स्तर पर उपयोगितावादी तरजीह के हिसाब से हमारे दिमाग द्वारा नोटिस में लिए जाते हैं। मतलब कोई चीज जिस सिद्धान्त पर टिकी हुई है, उसे जाने बगैर भी आप उठ सकते हैं; चल सकते हैं, दौड़-भाग सकते हैं; यहां तक कि सो यानी आराम भी फरमा सकते हैं।
हममें से कितने हैं जो 5 को बाइनरी में बदलना जानते हैं या कि बाइनरी से अंक में बदलने के सूत्र से अवगत हैं; लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप कंप्यूटर ही नहीं चला सकते या स्मार्ट फोन पर ‘मैसेजिंग’ नहीं कर सकते। यह एक-दूसरे से अभिन्न होते हुए भी व्यावहारिक स्तर पर उपयोगितावादी तरजीह के हिसाब से हमारे दिमाग द्वारा नोटिस में लिए जाते हैं। मतलब कोई चीज जिस सिद्धान्त पर टिकी हुई है, उसे जाने बगैर भी आप उठ सकते हैं; चल सकते हैं, दौड़-भाग सकते हैं; यहां तक कि सो यानी आराम भी फरमा सकते हैं।
दरअसल, गणित को हमेशा हमारे समाज ने चलता ढंग से लिया है। वे(हम आधुनिक मनुष्य) यह जान पाने की ओर कभी प्रवृत्त नहीं होते कि गणित ही सभी विधाओं का मूलाधार है और मानवजातीय विकास की सारी रूपरेखा एवं जटिल संरचनाएं इसी बीजक में कैद हैं। ज्योतिष जो आजकल अपने दंभ और अहमन्यतावादी दृष्टिकोण के कारण मनुष्यों का भाग्यफल बांचने तक सीमित है; वास्तविक अर्थों में दुनिया की निर्मिति के बारे में सबसे सही और उपयुक्त जानकारीअपने गर्भ में ही छुपा रखा है।
एक बात लें, वह यह कि पहले का मनुष्य अधिक ताकतवर था; उसके पास कार्य करने की अधिक क्षमता थी; वजन उठा सकने का अधिक सामथ्र्य था और गहराई में डूबकर अधिक चिंतन-मनन द्वारा मानसिक संतुष्टि हासिल कर पाने के उसे अनेकानेक गुण पता थे। फिर आज ऐसा क्या हो गया कि हम पहले की तुलना में अधिक अस्वस्थ, बीमार और स्वयं को थके-हारे महसूस कर रहे हैं। इसका कारण है कि हमारा गणित हिसाब गड़बड़ हो गया है और हम उसमें सुधार के बारे में नहीं सोच रहे हैं। इस गणित का व्यावहारिक ज्ञान उत्तरोत्तर किताबी होते गए हैं; और यह विषय दिमागी कसरत और दांव-पेंच के अलावा कुछ नहीं माना जाने लगा है। जबकि सचाई है कि हम सिर्फ एक सप्ताह अपने सांस लेने की रफ्तार में बढ़ोतरी कर दें अथवा अपनी क्रियाशीलता में इज़ाफा कर दें, तो ताज्जुबकारी परिणाम देखने को मिलेंगे। हां, इसके लिए कुछ समय सूर्य के प्रकाश का सम्पर्क बहुत जरूरी है।
तकनीकी-प्रौद्योगिकी के इस ज़माने में गणित को सभी मनुष्यों के जीवन का अंग-उपांग मानने की बजाए इंजीनियरों के दिमाग को चलाने वाला खुरापाती ज्ञान घोषित कर चुके हैं। यह ग़लत धारणा हमारे मन-मस्तिष्क में पैठे होने के कारण हम एक हद तक कामयाब तो हो रहें हैं; लेकिन काफी हद तक पिछड़ते भी जा रहे हैं।
आइए इस पर सिलसिलवार ढंग से बात करने का मन बनाएं। पर आज इतना ही।
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