राजीव रंजन प्रसाद
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दूरमनोभाषावैज्ञानिक रिपोर्ट
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दूरमनोभाषावैज्ञानिक रिपोर्ट
धीमे कदमों के साथ सयंत बर्ताव बरतते हुए दोनों अचानक कैमरे के विजुअल में उभर आते हैं।
बराक ओबामा और नरेन्द्र मोदी।
हैदराबाद हाउस के बाहर का यह खूबसूरत नज़ारा दोनों की आगवानी में सजीले पौधों और चित्ताकर्षक वातावरण से भरा-पूरा है। दोनों नेता इस बीच अनौपचारिक बातचीत करने में जुट गए हैं। बात की शुरुआत इर्द-गिर्द के दृश्यों के मुआयना करने से होती है। फिर बातचीज चीजों को देखने और उनके बारे में धारणा बनाने के सांस्कृतिक स्वभाव और प्रकृति पर केन्द्रित हो जाती है। नरेन्द्र मोदी अपनी मिथकों और प्रतीकों के बारे में उनके जबर्दस्त संदेशवाहक होने की बात कहते हैं। फिर व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर बात उतर आती है। यह सबकुछ बड़े ही सहज ढंग से दृश्य में घटित हो रहा है। सयंत, सन्तुलित और सतर्क निगााहों के साथ नरेन्द्र मोदी अपने हाव-भाव, देहभाषा, बोल-वचन कह रहे हैं। उन्हें पता है कि वह इस घड़ी पूरी दुनिया की निगाहबानी में अपने को रख पाने में सफल हो गए हैं। पत्रकारों का हुजूम दूर-दूर तक नज़र न आने के बावजूद उनकी बराक ओबामा के साथ मौजूदगी को पूरी दुनिया देख रही है।
नरेन्द्र मोदी का अधिकतम प्रयास है कि वह पूरे दृश्य में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मित्रवत व्यवहार करते दिखें; बेतक्कलुफ़ी के साथ खुलकर हंसते-बोलते नज़र आए। ओबामा भी मंजे अभिनयकार की तरह नरेन्द्र मोदी के रणनीति के मुताबिक कैमरे में खुद को शूट होने दे रहे हैं। बराक ओबामा थोड़े अधिक चैकस और सावधानी बरत रहे हैं। उनके रवैए में बीच-बीच में गंभीरता उभर आ रहा है।
नरेन्द्र मोदी के साथ वह चहलकदमी करते हुए एक और बढ़ते हैं। पहले से तयशुदा ढंग से उन दोनों के बैठने का इंतजाम किया गया है। दोनों नेता शाही कुर्सियों के करीब हैं। मोदीजी आसन ग्रहण करते हैं। बराक ओबामा भी समयानुकल व्यवहार दर्शाते हुए बैठ चुके हैं। नरेन्द्र मोदी चाय काढ़ने के लिए नक्काशीदार शाही केतली से गर्म दूध कप में उड़ेलते हैं और बराक ओबामा की ओर बढ़ा देते हैं।
बराक ओबामा के हाथों में घुमाव और गति दोनों अधिक है। वह हर चीज को विस्तार देते हुए अपनी ओर खींच लेते है। नरेन्द्र मोदी ध्यान से सुन रहे होने का बेहतर मुद्रा बनाते हैं। वे जब कहते हैं, तो उनके भाव-भंगिमा और देह-भाषा से शब्दार्थ निकाले जा सकते हैं; उसमें इंगित करने या कराने का भाव अधिक होता है। नरेन्द्र मोदी अपनी देहभाषा में कम समय में फुर्ती के साथ अधिक कहने का प्रयास कर रहे होते हैं। उन्हें पता होता है कि यदि कम समय में अधिक करतब नहीं दिखाया गया, तो वह फिर कैनवास में दूसरे दरजे का ‘रोल-मेकर’ होंगे; और नरेन्द्र मोदी को यह होना कतई पसंद नहीं है। इस घड़ी जिस जगह पर नरेन्द्र मोदी और बराक ओबामा चाय-बात 'सर्व' कर रहे हैं; वह पूर्णतया प्रायोजित दृश्य है। दोनों जानते हैं कि यहां बात ‘लाइन बिट्विन’ नहीं होने हैं। इस नाते यहां दोनों के सहज इंसानी सरोकार, भाव और भाषा ही शेयर होना है। बेमिसाल व्यक्तित्व के धनी दोनों नेताओं की बड़ी खासियत यह है कि दोनों अपने भाव-भंगिमा में खुशी का भरपूर इज़हार करने में पीछे नहीं रहते हैं। चाहे यह सायास घटित हो या अनायास।
भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी को ‘विज़ुअल लीडर’ कहा जाना सही होगा। वह अपने साथ शामिल होने वाले हर एक चीज को औकात में, सही मात्रा और सन्तुलन में रखते हैं। वह अपनी कमजोरी जानते हैं कि यदि एक बार उनकी चीजों पर से नियंत्रण छूट गई, तो उनके पास संभाल सकने की वैसी स्थिति और विकल्प है और न ही उतने ‘पेसेन्स’। इसलिए नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक आइने में आने से पूर्व ‘होमवर्क’ पर अधिक ध्यान देते हैं।
वस्तुतः नरेन्द्र मोदी जिन्हें विज़ुअल माकेटिंग का उस्ताद माना जाता है; वे जान रहे हैं कि इन दृश्यों की कीमत कलात्मक प्रोट्रेटों, चित्रों अथवा आकृतियों से कई गुना अधिक है। नरेन्द्र मोदी यह जानते हैं कि देश की जनता के लिए इस घड़ी वे देवता के मानिंद हैं। पूरे देश में उनके नाम के चर्चे हैं, मीडिया में डंके हैं और पूरा देश उनके हर एक कहे-सुने शब्द से स्वयं को कृत-कृत महसूस कर रहा है। अतः मि. बराक ओबामा के बहाने वे दिल्ली के मतदाताओं को भी साध रहे हैं; उन्हें यह अहसास करा रहे हैं कि तुम्हारा नेता देखों कितना बेजोड़ और शक्तिशाली है कि जिसे पूरी दुनिया सर्वशक्तिमान मानती है; वह उससे बराबरी के दरजे पर लाकर उसे आमने-सामने बातचीत कर रहा है। क्या इतनी नजदिकीयात आज से पहले अन्य सरकारें दिखा पाई हैं? क्या अन्य सरकारें सिवाए अमेरिका के आगे झुकने अथवा सजदा करने का कुछ ठोस और निर्णायक कर सकी हैं?
फिलहाल हमारा फोकस इन दोनों शख़्सियतों के व्यक्तित्व पर है। क्योंकि कैमरे के दृश्य द्वारा भारत का सम्पूर्ण जगत जैसे अनकहे सवालों का जवाब पा रहा हो या वह इस सम्मोहन में इस कदर डूब-उतरा रहा है कि उसे न तो अभी अपनी बदहाली पर रोना आ रहा है और न ही भूख, गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य अत्यावश्यक जरूरतों पर ही ध्यान जा-टिक पा रहा है।
इस वक्त जैसे सबकुछ पल भर के लिए ठहर-सा गया हो। सिर्फ दो ही हस्तियां गतिमान-गतिशील दिखाई दे रही हैं; एक नरेन्द्र मोदी और दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा। ओबामा पहले ही यह जता चुके हैं कि वे भारत में अपने लिए किये गए भव्य स्वागत से अभिभूत हैं।
अभी कुछ घंटे पहले जब बराक ओबामा को लिए हुए भारतीय प्रधानमंत्री हैदराबाद हाउस के गलियारे में प्रकट हुए, तो उनकी चहलकदमी में अजब का निखार और चेहरे पर अद्भुत प्रसन्नता के भाव थे। दोनों गर्मजोशी से मिले। नरेन्द्र मोदी से हाथ मिलाते बराक ओबामा के हाथ नरेन्द्र मोदी का पीठ स्पर्श कर रहे थे। कैमरे की खासियत ही यह है कि वह कहन के मामले में सच से अधिक साफगोई बरतती हैं। कई बार कलाात्मक चमात्कार इस तकनीक के माध्यम से यथार्थ या सचाई को ‘लार्जर दैन लाइफ’ बना देते हैं।
हैदराबाद हाउस में अंदर गुफ्तगू करने जाते समय भी बराक ओबामा के हाथ सहसा नरेन्द्र मोदी के पीठ की ओर बढ़ गए थे; मानों दृश्य के संकेत मौन में कह रहे हों-‘बहुत खूब, बरखुरदार....आप और आपके सारे इंतजमात बेहद दुरुस्त और परफेक्ट टाइमिंग वाले हैं।’’
आपको बता दें कि हैदराबाद हाउस का यह प्रांगण अपनी बेमिशाल खूबसूरत और बेहद करीने रंगरोगन के लिए जाना जाता है।खूबसूरती एक ऐसी चीज है जो सबको बांध लेती है। टेलीविज़न चैनल वाले तुरत-फुरत में इन दृश्यों के लिए मुहावरों गढ़ रहे हैं।; जुबान के भीतर से कोई नया शब्दावली टटोल रहे हैं, जिसे यहां चस्पा कर वो अपनी टीआरपी बढ़ा सके। महाकवरेज में अहर्निश जुटी भारतीय मीडिया के पास ईमान-धर्म नाम की कोई चीज बची नहीं है। वह ‘पैसा फेंक तमाशा देख’ फलसफ़े को अपना चुकी है। भारतीय मीडिया का मतलब है दिल्ली और दिल्ली का मतलब है-'ग्लोबल मीडिया'।
भारतीय सन्दर्भों में यह एक सचाई है कि भारतीय मीडिया से अधिक ताकतवर है-गूगल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सप...क्योंकि उसकी पहुंच, रुतबा और प्रभाव उससे कई गुना अधिक है। देश की जनता भी इतनी मूढ़ नहीं है। वह जान चुकी है कि उनकी जिंदगी लोकतंत्र, मीडिया और न्यायालय के बगैर नहीं चल सकती है; इसलिए उसने इन ताकतों से पंगा लेना अथवा मुंह लड़ाना छोड़ दिया है। यह जनता का अपने तरीके का गांधीवादी प्रतिक्रिया है जिसे बुद्धिवादी जन अपनी-अपनी तरह से परिभाषित कर रहे हैं। अब देश में कहीं कोई विरोध नहीं, प्रतिरोध नहीं, आन्दोलन नहीं, गुस्सा नहीं और न ही युवा-आक्रोश। ऐसा लग रहा है मानों एक साथ सब की मती मारी गई है। युवा-प्रतिरोध पिज्जा-बर्गर वाली और रेव-पार्टी में ठुमके लगाने वाली हो गई है। भारत का पढ़ा-लिखा तबका फैशनबाज, लड़कीबाज या फिर छोटा-बड़ा कारोबारी है। वहीं दूसरी ओर, गांव टेलीविजन के भूगोल-प्रसारण क्षेत्र का हिस्सा नहीं है। अतः ग्रामीण जनता की ख़बरें मीडिया में तब आती है जब वे जहरीली शराब पीकर मरते हैं या कि पी. साईनाथ जैसा पत्रकार यह ठान लेता है कि उसे ख़बर तो हर कीमत पर गांव से ही लानी और करनी है। नतीजतन सवा करोड़ आबादी वाले इस देश को कुछ हजार लोग मिलकर चला रहे हैं; अपना झंडा गाड़ते हुए पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रहे हैं। मीडिया उन्हीं की गले की घंटी बनी हुई बड़ी होशियारी से लगातार बज रही है। देश ख़बरों के बरास्ते 24x7 की चाल से चल रहा है। चरैवति-चरैवति।
फिलहाल हैदराबाद हाउस के प्रांगण की चाय-पार्टी समाप्त हो ली है। नरेन्द्र मोदी उठने का मुद्रा बनाते हुए सीधे खड़े होते हैं; और मि. बराक ओबामा से कहते हैं-‘आइए, चला जाए!’
मि. ओबामा हामी भरते हैं-‘हां जी, चलिए सबकुछ आपके अनुसार बिल्कुल समय से और मुझे लगता है आपके इच्छा के तहत सब ठीक-ठाक ही रहा।’
नरेन्द्र मोदी ठठाकर हंस देते हैं। कैमरा उनकी चहलकदमी पर पैन होता हुआ उन्हें दूर जाने दे रहा है। दोनों चहलकदमी के साथ जिस रास्ते दो-तीन सीड़ियों से नीचे उतरे थे; जाने लगते हैं।
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