Thursday, January 22, 2015

स्कूल चलें हम

प्रिय देव-दीप,

बेतरह ख़राब मौसम है। ठिठुरन और गलन भी। लेकिन जगना और स्कूल के लिए तैयार तो होना ही है। आपदोनों को बाहरी वातावरण को देखकर दिली इच्छा नहीं हो रही है कि जगाएं; लेकिन नींद से जगना और सक्रिय होना जरूरी है। क्योंकि आराम की स्थिति आवश्यकता से अधिक होने पर जिंदगी को नीरस यानी बोरिंग बना देती हैं। अतः सुबह-सुबह उठना और फ्रेश हवा में सांस लेने के लिए बिस्तर से बाहर आना हुआ न वाजिब!

देव-दीप, घर से बाहर निकलेंगे, तो ही न यह जान पाएंगे कि बाहर में लोगों की हाल-दशा क्या है? वे ठंड से बचने का क्या और किस तरह उपाय कर रहे हैं? उनके पास उपाय के पर्याप्त साधन मौजूद हैं भी या नहीं। यह सही नहीं है न कि हम रजाई में दुबके रहे और बाहर में लोग ठंड में ठिठुरते हुए अपने काम-धंधे में लगे-जुटे रहे। सामाजिकता दूसरों से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है; औरों के गम-दुःख, हंसी और खुशी में शरीक होने का आमंत्रण देती है।

देव-दीप, मनुष्य पैसे से नहीं बन सकता है। यदि ऐसा होता, तो गरीबों-बेसहारों के घर में किलकारी क्यों गूंजती? क्यों उनका घर-आंगन भी बच्चों से हरदम गुलजार हुआ करता। दरअसल, प्रकृति ने सब इंतजाम एकसमान किए हैं। भले किसी औरत के पास चमचमाती साड़ी न हो, भौतिक सुख-सुविधाओं का भंडार न हो; लेकिन जब वह मां बनती है, तो उसे गाय खरीदने की नौबत नहीं आती है। उसके छाती में दूध खुद उतरा जाता है जिसमें दुनिया के सभी पौष्टिक तत्त्वों का मिश्रण होता है, जो बच्चे को सेहतमंद बनाने का जरूरी खुराक साबित होता है।

देव-दीप, मेरा इतना लाम-लिफाफा बांचने का एक लाइन में अर्थ यह है कि हर रोज सुबह-सुबह जगना वास्तविक अर्थों में जागरूक होना है। हमारी इंद्रियां ज्ञान को सबसे करीब से पहचानती है। किताब तो हमें मांजते मात्र हैं; वे हमारे नाक-नक्श बनाते और दुनिया के हिसाब से सवांरते हैं। जैसे तुम्हारी मां करीने से तुमदोनों के बालों में कंघी करती है। तुमदोनों के स्वाद के हिसाब से पूछकर तुम्हारा मन-पसंद आलू-भूजिया, सत्तू-पराठा बनाती है।

....तो चलो, आपदोनों तैयार होओ। आज सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिन है, उन्हें प्रणाम करो, विश करो। उनके बारे में यह जानों कि उन्होंने पहली बार जब रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया था तो भारत के लोगों के ठंडे खून में बिजली उतर आई थी; लोग उन्हें अपने बीच पाने के लिए बेचैन हो उठे थे। ऐसा लोग कहते हैं और लोक के लोग झूठ नहीं बोलते हैं।

देव-दीप, सुभाष चन्द्र बोस की दुःखद मौत हुई इस बारे में आयोजननुमा दुःख जाहिर करने से ज्यादा जरूरी है कि हम उन जैसा होने/बनने की ठानें। कथनी और करनी में साम्य रखे। मानवीय-मूल्यों और दृष्टिकोणों को अधिक से अधिक तरज़िह दें; अपनी आरामतलबी ज़िंदगी से जिरह करें; अपनी पहचान करें; क्योंकि देश का विकास हमारे व्यक्तित्व के रास्ते से ही हो कर जाता है। अतः सर्वप्रथम अपनी छवि साफ रखें, समस्त कलुषित भावनाओं का त्याग करें; उसके बाद बाहरी दुनिया को स्वच्छ बनाने के अभियान में कूद पड़े, संकल्प लें, श्रमदान करें। आमीन!

तुम्हारा पिता
राजीव

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...