Thursday, June 19, 2014

आम-आदमी


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रोटी बनाने के लिए
जितनी गूँथीं जाती हैं आटा
भात बनाने के लिए
जितनी धोई जाती है चावल
घर भर के अंदाज से
जितनी काटी जाती है तरकारी थाल में
राजीव, आम आदमी को हर रोज
अपने लिए उतना ही जीना चाहिए
बाकी चिंताएँ छोड़कर कल पर....!
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-राजीव रंजन प्रसाद

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

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