Saturday, June 14, 2014

कुछ भी नहीं होता अचानक, यूँ ही


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आप को भूख न लगी हो
और खाना खाने के बारे में सोचने लगे
आप को ज्वर न हो
और डाॅक्टर दिखाने लगे बढ़ा हुआ तापमान
आप को उबकाई न आ रही हो
और लोग आपके मुँह के आगे छान दे कटोरे

प्रिय राजीव,
कुछ भी नहीं होता अचानक, यूँ ही
फाॅल्ट होने पर ही समस्या उत्पन्न होती है
रास्ता गड़बड़ होने पर ही ‘रूट डाइवज्र्ड’ होता है
मामला बिगड़ने पर ही हाथापाई की नौबत आती है
आप सच बोलें और लोग उस पर विश्वास न करें
यह भी तभी होता है जब आप बोलते हैं बिलावजह या बेवज़ह

प्रिय राजीव,
कुछ भी नहीं होता अचानक, यूँ ही
कि आप भाषा में गाते रहे और लोग कान न दें।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...