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‘‘....उस(कोई भी हो सकता है, यहाँ मोहनदास) का पूरा संघर्ष एक बेगानी धरती पर एक अनजाने और आम-आदमी का संघर्ष था। हर विस्थापित आदमी को, चाहे वह अपने देश में हो या विदेश में, संघर्ष करना पड़ता है भले ही देशकाल की दृष्टि से परिमाण या गुणात्मकता में अन्तर हो। हर कोई अपने जीवन में एक निर्धारित, अनिर्धारित या अल्प निर्धारित उद्देश्य की तरफ बढ़ने का उद्यम करता है। उसके लिए त्याग करता है, पीड़ाएँ सहता है, आकांक्षाएँ पालता है। जो भी संभव हो, जरूरी, गैर-जरूरी सबकुछ करता है।....’’
यह अंश गिरिराज किशोर लिखित पुस्तक ‘पहला गिरमिटिया’ का है। गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए हुये जीवन पर केन्द्रित इस उपन्यास की चर्चा पर्याप्त मात्रा में हुई है। आप इस किताब से अवश्य परिचित होंगे। यहाँ यह उद्धरण उन शोध-छात्रों के निमित प्रस्तुत है जो अपने अकादमिक अभिलक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वह हर टिटिमा(जो भी संभव हो, जरूरी, गैर-जरूरी सबकुछ) करते हैं जिसका किया जाना साँस लेने, भोजन करने, पानी पीने, टहलने-घूमने अथवा बातचीत-बहस आदि में शामिल होने की माफ़िक ही अनिवार्य/अपरिहार्य बनाये जा चुके हैं।..........(जारी...,)
(‘रजीबा को गुस्सा क्यों आता है?’ पांडुलिपि से साभार)
‘‘....उस(कोई भी हो सकता है, यहाँ मोहनदास) का पूरा संघर्ष एक बेगानी धरती पर एक अनजाने और आम-आदमी का संघर्ष था। हर विस्थापित आदमी को, चाहे वह अपने देश में हो या विदेश में, संघर्ष करना पड़ता है भले ही देशकाल की दृष्टि से परिमाण या गुणात्मकता में अन्तर हो। हर कोई अपने जीवन में एक निर्धारित, अनिर्धारित या अल्प निर्धारित उद्देश्य की तरफ बढ़ने का उद्यम करता है। उसके लिए त्याग करता है, पीड़ाएँ सहता है, आकांक्षाएँ पालता है। जो भी संभव हो, जरूरी, गैर-जरूरी सबकुछ करता है।....’’
यह अंश गिरिराज किशोर लिखित पुस्तक ‘पहला गिरमिटिया’ का है। गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए हुये जीवन पर केन्द्रित इस उपन्यास की चर्चा पर्याप्त मात्रा में हुई है। आप इस किताब से अवश्य परिचित होंगे। यहाँ यह उद्धरण उन शोध-छात्रों के निमित प्रस्तुत है जो अपने अकादमिक अभिलक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वह हर टिटिमा(जो भी संभव हो, जरूरी, गैर-जरूरी सबकुछ) करते हैं जिसका किया जाना साँस लेने, भोजन करने, पानी पीने, टहलने-घूमने अथवा बातचीत-बहस आदि में शामिल होने की माफ़िक ही अनिवार्य/अपरिहार्य बनाये जा चुके हैं।..........(जारी...,)
(‘रजीबा को गुस्सा क्यों आता है?’ पांडुलिपि से साभार)
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