Friday, June 27, 2014

वाया अख़बार ‘एज इट इज’ स्त्री-संहार चालू है!









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समाज में ग़लत कुछ लोग हैं। सही और काबिल बहुत लोग हैं। मैं तो देखने से ही टिटीहरी लगता हूँ। मेरी क्या...फिलहाल अख़बार की कतरने जिसमें इंसान को पैदा करने वाली औरतें इंसानियत की भीख, पनाह....इज्ज़त बख़्शने की माँग कर रही हैं...........सुनो ...सुनो...सुनो....जरा मेरी भी एक दरख़ास सुनो!!!

बकौल नज़ीर अकबराबादी:

याँ आदमी ही नार है और आदमी ही नूर
याँ आदमी ही पास है और आदमी ही दूर
कुल आदमी का हुस्नो-क़बह में है याँ ज़हूर
शैताँ भी आदमी है जो करता है मक्रो-जूर


और हादी रहनुमा है, सो है वो भी आदमी।....

याँ आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी ही तेग़ से मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी के उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी

और सुन के दौड़ता है, सो है वो भी आदमी।
 

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...