Friday, June 6, 2014

मैं आपकी झुलनी बजाऊँ...यह मुझसे नहीं होगा

 बीएचयू ‘रिक्रूटमेंट एण्ड असेसमेन्ट सेल’ को निम्न जवाब भेजे एक वर्ष हो गया। लेकिन, इस सम्बन्ध में न मुझे कोई जवाब मिला और न ही साक्षात्कार हेतु बुलावा-पत्र ही प्राप्त हुआ। प्रयोजनमूलक हिन्दी पत्रकारिता विषय के अन्तर्गत विज्ञापित सहायक प्राध्यापक पद के लिए बतौर आवेदक मैंने हरसंभव प्रतीक्षा किया। आपको भी लग रहा है न कि अब बहुत हो गया....छोड़ दिया जाए। एक झटके में पाँच पूर्ण हुए अध्यायों को ‘डिलीट’ कर उन्हें फिर से लिखना शुरू किया जा सकता है; वनस्थली विद्यापीठ को अपनी जरूरी ‘नोटिंग’ लगाकर उन्हीं  शर्तो के आलोक में साक्षात्कार हेतु बुलाने का आग्रह किया जा सकता है, तो फिर यह क्यों नहीं?

i. Details of significant conribution to knowledge :
1.    सूचनावान-पीढ़ी => ज्ञानवान पीढ़ी
मेरी दृष्टि में भारतीय अकादमिक जगत के शैक्षिक-सांस्कृतिक गतिकी का यथार्थवादी दृष्टिकोण से मूल्यांकन-विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। यह इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान सदी सूचना-सदी है। सूचना-आधिक्य अथवा सूचनाक्रान्त स्थिति में विभ्रम होना तय है। भारतीय विश्वविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन में संलग्न लोगों पर इसी सूचनावान-पीढ़ी को ज्ञानवान-पीढ़ी बनाने की महती जिम्मेदारी है यद्यपि यह चुनौतीपूर्ण कार्य है। 

2.    ज्ञान का व्यावहारिक अनुप्रयोग:
मेरे लिए ज्ञान प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द पर आधृत चिन्तन-दृष्टि है। प्रत्येक मनुष्य के अन्तर्मन में विद्यमान ये वे अभिकारक हैं जो हमारे भीतर विषय-विशेष से सम्बन्धित ज्ञान को उद्बुद्ध, उद्दीप्त और उद्भासित करते हैं। ज्ञान, कर्म और अर्थ की पारस्परिक अन्तक्र्रिया द्वारा ही इस व्यावहारिक जगत का संचालन होता है। अतः मन, वाणी और कर्म का एकान्वयी होना और विशिष्ट प्रयोजनमूलक क्षेत्र में संकल्पबद्ध गति से ज्ञान का व्यावहारिक अनुप्रयोग है।

3.    अन्तर-अनुशासनिक एवं नवाचार आधारित शिक्षा:
21वीं शताब्दी में शिक्षा के मानदण्ड तेजी से बदले हैं; विचारों का अन्तरराष्ट्रीयकरण हुआ है, तो दूसरी ओर अन्तर-सांस्कृतिक कार्यकलापों में भी खासे परिवर्तन हुए हैं। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी(I&CT) की लहर और तरंग(संचारविद् आल्विन टाॅफ्लर के शब्दों में ‘Thied Wave’) वर्तमान समय की सबसे बड़ी सचाई है। कंप्यूटर, इंटरनेट और वेबसाइटों की तिकड़ी ने पारम्परिक शिक्षा के ज्ञान-अभिकेन्द्रों के समक्ष जबर्दस्त चुनौती पेश की है। यहाँ ध्यान देने योग्य विषय यह है कि नवाचार(innovation) आधारित इस पेशकश ने मानवीय-कौशल का प्रबन्धन कुशलतापूर्वक किया है। आज जनमाध्यम की सत्ता या कि प्रभुतत्त्व निर्विवाद रूप से ग्राह्î है।

4.    नवोन्मेष आधारित शोध-अनुसन्धान में अभिवृद्धि:
किसी भी विषय या अनुशासन के ज्ञान-दायरा में संवृद्धि के लिए शोध या अनुसन्धान-कार्य जरूरी है।  ज्ञान के नये सन्दर्भों का प्रादुर्भाव या कि ज्ञान के पुराने सन्दर्भो का नवीनीकरण इसी प्रक्रिया से संभव है। भारत में उच्च शिक्षा विशेषतया मानविकी क्षेत्र में शोध-अनुसंधान की स्थिति और दशा औसत से निम्न कोटि की है। अतः वर्तमान शोध-परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन की दिशा में चिन्तन अपरिहार्य है। द्रष्टव्य है कि शोध-प्रक्रिया के अन्तर्गत सूचनाओं, आँकड़ों अथवा जानकारियों को संकलित/संगृहीत किया जाना शोधकार्य का अनिवार्य हिस्सा है; किन्तु यह किसी शोध-अनुसन्धान का संभावित निष्कर्ष नहीं है। वर्तमान शैक्षिक-परिवेश में संभावित और समयानुरूप बदलाव से ही उच्च शिक्षा के वर्तमान धरातल पर ज्ञान के नए प्रारूप विकसित एवं सृजित किए जा सकते हैं। अतः शोध-कार्य एवं शोध-प्रविधि के स्तर पर नवोन्मेषी(innovative) एवं अन्तर-अनुशासनिक(interdisciplinary) अभिगम को अपनाया जाना महत्त्वपूर्ण है। मेरी दृष्टि में इन पर पूरी संजीदगी और सहृदयता के साथ विचार किया जाना चाहिए।

ii. Evidence of being activity engaged in research or innovation or in teaching methods or production of teaching material :

मैं अपने 'पत्रकारिता एवं जनसंचार' विषय के बहुआयामी अध्ययन-क्षेत्र और लेखन-कार्य से गहरी संवेदना, दृढ़इच्छाशक्ति एवं सक्रियता के साथ सम्बद्ध रहा हूँ। राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं एवं आॅनलाइन वेबपत्रों में मेरा रचनात्मक योगदान लेखकीय प्रतिबद्धता के साथ रहा है। समसामयिक मुद्दों, घटनाओं, चर्चित आयोजनों, रचनात्मक गतिविधियों इत्यादि में मेरी सदैव सहभागिता रहती है। यहाँ यह संकेत करना आवश्यक है कि मेरे शोधकार्य का प्रस्तावित विषय अन्तर-अनुशासनिक प्रकृति का है। अतएव, मेरे शोधाध्ययन एवं लेखन-सम्बन्धी कार्यक्षेत्र का कैनवास विस्तृत और व्यापक जनसमूह से सम्बन्धित है। मैं अपने लेखन-कार्य के अन्तर्गत संचार और पत्रकारिता विषय के अतिरिक्त राजनीति, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान, कला, दर्शन, साहित्य एवं संस्कृति इत्यादि की अर्थच्छटाओं और जीवनानुभवों को प्रतिबिम्बित या पुनःरचित करने की हरसंभव चेष्टा करता हँू। यह मेरे अकादमिक विचार-सरणि और चिन्तन-प्रक्रिया का हिस्सा है। अन्यत्र उल्लिखित शोध-पत्रों के अतिरिक्त इस दिशा में मेरे कार्य एवं कतिपय प्रकाशित लेख/आलेख के शीर्षक एवं प्रकाशन सम्बन्धी विवरण निम्नांकित हैं:
1.    देखने हम भी गए थे...तमाशा न हुआ     ः समकालीन तीसरी दुनिया; मार्च, 2013 अंक।
2.    अमरीकी इरादों का डीएनए टेस्ट जरूरी    ः सबलोग; जुलाई, 2011।
3.    प्रेमचन्द के गाँव लमही से लौटते हुए     ः कादम्बिनी; जुलाई, 2011।
4.    बिहार का जनादेश                      : सबलोग; जनवरी, 2011।
5.    कोरिया बनाम कोरिया,
       अमेरिका की बढ़ती दखलंदाजी             : जनमत; दिसम्बर, 2010।


iii. Experience of Industry/NGOs or Professional Field which should include innovation and/or Research Development:

वर्तमान समय में मैं पूर्णकालिक शोधकार्य में संलग्न हँू। संचार क्रान्ति और वैश्वीकरण के अधुनातन दौर में जनसंचार माध्यम ऐसा व्यवहार क्षेत्र है जिसमें हिन्दी की विभिन्न प्रयुक्तियाँ देखी जा सकती है। अब यह स्थापित हो चुका है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रयुक्त हिन्दी भाषा में वे सभी अवयव हैं जो हिन्दी के व्यवहार क्षेत्रों में प्रायः प्रयुक्त होते हैं। किसी भी स्तरीय हिन्दी समाचार पत्र में राजनीतिक, प्रशासनिक, व्यावसायिक, वाणिज्यिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, पारिभाषिक, कृषि, साहित्यिक, सांस्कृतिक आदि प्रमुख प्रयुक्तियों के साथ ही सम्पादकीय, सम्पादक के नाम पत्र, रूपक, खेलकूद समाचार, फिल्म समीक्षा, विज्ञापन, शेयर आदि की विशिष्ट लेखन शैलियाँ भी परिलक्षित की जा सकती हैं।

यदि मुझे इस पाठ्यक्रम के शैक्षणिक-प्रकार्य का हिस्सा बनने का सुअवसर मिलता है तो मेरी प्राथमिकताएँ निम्नांकित होंगी:
 
(क) टेलीविज़न, रेडियो, फिल्म कंप्यूटर और नवमाध्यम से सम्बन्धित गम्भीर अध्ययन-अध्यापन और वे अछूते विषय जो वर्तमान सूचना-सदी में अपनी निर्णायक भूमिका के लिए जाने जा रहे हैं; से सम्बन्धित विषय-पत्र को आरंभ किए जाने सम्बन्धी योजना को प्रस्तावित करना। इससे विद्यार्थियों में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के सूचना-प्रकम को समझने में हरसंभव मदद मिल सकेगी तथा वे जनमाध्यम आधारित अनुप्रयुक्त संचार के महत्त्व और विशिष्टता को भी जान सकेंगे।

(ख) उन सर्जनात्मक गतिविधियों को अधिकाधिक प्रोत्साहन प्रदान करना जिनसे विद्यार्थियों के आन्तरिक व्यक्तित्व का विकास संभव हो सके तथा उनमें सामाजिक-संवेदनशीलता और मानवीय चेतना से सम्बन्धित शीलगुण में परिवर्तनकामी अभिलक्षण विकसित हो सकें।

(ग) उन प्रयासों को संवलित करना जिनसे विद्यार्थियों में हिन्दी भाषा के प्रयोग एवं प्रयुक्ति से सम्बन्धित स्वाभाविक रुझान, जिज्ञासा और ज्ञान-अभिरुचि की भावना को जाना जा सके तथा उन्हें विकसित करने की दिशा में आवश्यक पहलकदमी की जा सके। 

(घ) ‘कक्षा अन्तक्र्रिया’ के व्यावहारिक पक्ष पर सैद्धान्तिक गहराई के साथ-साथ ध्यान केन्द्रित करना। इसके लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में विद्यार्थियों की दक्षता में अभिवृद्धि पर विशेष ध्यान आकृष्ट करना।  

No comments:

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...