...........................
(देव-दीप के लिए)
चिडियाँ हीक भर
पानी पीती है
और नदी चिड़ियाँ के बोल सुन
तृप्त होती है अन्दर तक
नदी जिसने हर ताप को सह कर
सीखा है ठंडा रहना
कल-कल मृदु-भाव से बहना
बाधाओं से लड़ना...चुनौतियों से टकराना
उसी भाँति चिड़ियाँ ने जाना है
आदमखोर मनुष्यों के जमात से बचना
मौसम के बयार के विपरीत
आकाश में उड़ना...अंतधर््यान हो जाना
देव-दीप, आदमी की तरह
अधिक जानने और कुछ भी न करने से
कितना अच्छा है!
नदी और चिड़ियाँ होना....?
No comments:
Post a Comment