Tuesday, May 13, 2014

राजीव के लिए अपनी भाषा में मनुहार

‘‘हत्यारे एकदम सामने नहीं आते
वह पुराना तरीका है एक आदमी को मारने का
अब एक समूह का शिकार करना है
हत्यारे एकदम सामने नहीं आते
उनके पास हैं कई-कई चेहरे
कितने ही अनुचर और बोलियाँ
एक से एक आधुनिक सभ्य और निरापद तरीके
ज्यादातर वे हथियार की जगह तुम्हें
विचार से मारते हैं
वे तुम्हारे भीतर एक दुभाषिया पैदा कर देते हैं।’’
...........................................................................-धूमिल

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...