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जनप्रतिनिधियों को युवा अंध-समर्थन करने की बजाए उन्हें ज़मीनी ककहरा सीखने पर विवश कर रहे हैं। भारत की राजनीति जो अब तक राजनीतिक मुहावरे से चला करती थी; वर्तमान युवा पीढ़ी अब उसका टोंटी दबा रही है। इस बार लोकसभा चुनाव में ये असर खूब दिखे। युवा भागीदारी, हस्तक्षेप और नेतृत्व हर मोर्चे पर जारी है। लेकिन, ये परिवर्तनकारी उफान फिलहाल तात्कालिक है, दीर्घकालिक कम। तब भी राजनीति के बारे में व्यावहारिक हो कर सोचते युवाओं को मौजूदा समय की धारा में तैरना है, आगे बढ़ना है, अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करना है। आधुनिक जीवनशैली का युवा बेरोकटोक लव-इमोशन-फैशन और पैशन चाहता है। राजनीति से जुड़ी मध्यवर्गीय सोच या मानसिकता भी तेजी से बदल रही है। अब काॅलेज-गोइंग लड़कियाँ भी राजनीतिक बहस-मुबाहिसे में जबर्दस्त संवाद-चर्चा कर रही हैं। भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अब पारम्परिक राजनीतिक धारणाओं के दायरे को तेजी से तोड़ रहा है। अब नए प्रतीक, बिम्ब, मिसाल, मुहावरे और उदाहरण बनते दिख रहे हैं। पुरानी राजनीति इनकी राह में रोड़ा बनने की लाख कवायद कर ले, उसे अंततः टूटना ही है। जनसरोकार, जनकल्याण, जनसेवा, जनपक्षधरता आदि जैसे शब्दों का सहारा लेकर कई दशक तक धर्म, जाति, सम्प्रदाय, जोड़तोड़, तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले मुँह की खा रहे हैं। देश का युवा लोकतंत्र में किसी शहजादे अथवा रईसजादे को भेजने की बजाय अब वहाँ खुद होने की ताकीद कर रहा है। अब तक जो परिवार इस ‘गन्दी राजनीति’ से अपने बच्चों को हरसम्भव दूर रखना चाहते थे अब उन्हें इस ओर जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भारत में धर्म, जाति, सम्प्रदाय, समुदाय, जैसे मोहरे अपनी हीनग्रंथि को भंजाने के लिए राजनीति करते थे; अब ये औजार ‘आउटडेटेड’ हो चुके हैं। भारतीय जनता को अब सिर्फ न्यायसंगत, निष्पक्ष और पारदर्शी शासन-व्यवस्था चाहिए। वास्तविक संकल्प, विकल्प और नेतृत्व के मूल्यबोध और विवेक-बुद्धि से संयुक्त जनतांत्रिक सरकार चाहिए। अन्यथा अमरीकी ढर्रे के प्रचार के बदौलत अगली बार भी मोदी सरकार बन जाये; इस चमत्कार के बारे में खुद भाजपाई नेतागण भी नहीं सोच सकते हैं।
(वेबसाइट http://blogs.lse.ac.uk पर राजीव रंजन की टिप्पणी)
जनप्रतिनिधियों को युवा अंध-समर्थन करने की बजाए उन्हें ज़मीनी ककहरा सीखने पर विवश कर रहे हैं। भारत की राजनीति जो अब तक राजनीतिक मुहावरे से चला करती थी; वर्तमान युवा पीढ़ी अब उसका टोंटी दबा रही है। इस बार लोकसभा चुनाव में ये असर खूब दिखे। युवा भागीदारी, हस्तक्षेप और नेतृत्व हर मोर्चे पर जारी है। लेकिन, ये परिवर्तनकारी उफान फिलहाल तात्कालिक है, दीर्घकालिक कम। तब भी राजनीति के बारे में व्यावहारिक हो कर सोचते युवाओं को मौजूदा समय की धारा में तैरना है, आगे बढ़ना है, अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करना है। आधुनिक जीवनशैली का युवा बेरोकटोक लव-इमोशन-फैशन और पैशन चाहता है। राजनीति से जुड़ी मध्यवर्गीय सोच या मानसिकता भी तेजी से बदल रही है। अब काॅलेज-गोइंग लड़कियाँ भी राजनीतिक बहस-मुबाहिसे में जबर्दस्त संवाद-चर्चा कर रही हैं। भारतीय लोकतंत्र का भविष्य अब पारम्परिक राजनीतिक धारणाओं के दायरे को तेजी से तोड़ रहा है। अब नए प्रतीक, बिम्ब, मिसाल, मुहावरे और उदाहरण बनते दिख रहे हैं। पुरानी राजनीति इनकी राह में रोड़ा बनने की लाख कवायद कर ले, उसे अंततः टूटना ही है। जनसरोकार, जनकल्याण, जनसेवा, जनपक्षधरता आदि जैसे शब्दों का सहारा लेकर कई दशक तक धर्म, जाति, सम्प्रदाय, जोड़तोड़, तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले मुँह की खा रहे हैं। देश का युवा लोकतंत्र में किसी शहजादे अथवा रईसजादे को भेजने की बजाय अब वहाँ खुद होने की ताकीद कर रहा है। अब तक जो परिवार इस ‘गन्दी राजनीति’ से अपने बच्चों को हरसम्भव दूर रखना चाहते थे अब उन्हें इस ओर जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भारत में धर्म, जाति, सम्प्रदाय, समुदाय, जैसे मोहरे अपनी हीनग्रंथि को भंजाने के लिए राजनीति करते थे; अब ये औजार ‘आउटडेटेड’ हो चुके हैं। भारतीय जनता को अब सिर्फ न्यायसंगत, निष्पक्ष और पारदर्शी शासन-व्यवस्था चाहिए। वास्तविक संकल्प, विकल्प और नेतृत्व के मूल्यबोध और विवेक-बुद्धि से संयुक्त जनतांत्रिक सरकार चाहिए। अन्यथा अमरीकी ढर्रे के प्रचार के बदौलत अगली बार भी मोदी सरकार बन जाये; इस चमत्कार के बारे में खुद भाजपाई नेतागण भी नहीं सोच सकते हैं।
(वेबसाइट http://blogs.lse.ac.uk पर राजीव रंजन की टिप्पणी)
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