Tuesday, May 13, 2014

जनता दिमाग में विवेक रखती है!


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युवा पीढ़ी को नरेन्द्र मोदी भा रहे हैं, तो इसकी वजहें बहुत सारी है। बार-बार ठगी जाती जनता को एक ही ठग ताज़िन्दगी नहीं ठग सकता है। कांग्रेस की राजनीतिक किताब यहीं ख़त्म हो रही है। बाकी दल लोकतंत्र के लटकन हैं; यह पब्लिक है जो सब जानती है। यानी उन पर भरोसा करना मौजूदा युवा पीढ़ी के लिए खुद का खुद से ही माखौल उड़ाना है। अतः वह इस बार चुनाव में यह टिटिमा नहीं करना चाहती है।

सवाल उठता है, तो फिर! जवाब में अधिसंख्य युवा सस्वर कंठ से ‘नमो नमो’ बोलते दिख रहे हैं। ये युवा पढ़े-लिखे, समझदार और जागरूक युवा हैं। ‘इमोशनल अत्याचार’ अथवा ‘नैतिक चीत्कार’ करने वाले पार्टियों की ये युवा बैन्ड बजा देने में उस्ताद हैं। ये युवा इतनी कूव्व्त रखते हैं कि ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ का चोचरम करने वाले राजनीतिज्ञों की पतलून ढीली कर दें। अपनी काबीलियत और सामथ्र्य से आगे बढ़ने को उतावली यह पीढ़ी जो आजतक मौका-ए-वारदात पर साक्षी/द्रष्टा होते हुए भी कुछ नहीं बोलती थी; अब राजनीतिज्ञों से सीधा सवाल कर रही है, उनसे स्पष्ट भाषा में संवाद कर रही है। जनादेश की दिशा को ये भारतीय युवाज्वार बदल कर रख देगी; यह विश्वास उम्र में बड़ी पीढ़ी को ही नहीं पुरनियों को भी जबर्दस्त हैं।

यह कोई चमत्कार नहीं है। आज का युवा व्यावहारिक सोच में पगा है। प्रोफेशनल माइंड सेट। टिट फौर टैट। नो चांस बिफोेर, नो टिकट मोर। आज यही युवा-पीढ़ी जिस पर अराजनीतिक होने का आरोप लगता रहा है, अब अपनी राजनीतिक सक्रियता द्वारा सबको चैंका रहा है। लोगों में राजनीतिक चेतना का निर्माण करने में यह युवा ज़मात अपना कीमती वक्त ‘इन्वेस्ट’ कर रही है। वह जानती है कि भारतीय राजनीति में लफ़्फाज, फेंकू, चम्पू, पप्पू, डेमागाॅग या फिर रैबल राउजर टाइप नेताओं की बाढ़ आ गई है; यह चुनाव उन्हीं की छँटनी करने का जायज़ तरीका है। वे उसी की जीत पक्की अथवा सुनिश्चित करेंगे जिस राजनीतिज्ञ की नियत साफ हो, नीति सार्वभौमिक हो, व्यक्तित्व प्रभावशाली हो, प्रतिबद्धता निर्णायक हो, सोच एवं दृष्टि सार्वदेशिक और सर्वतोमुखी तो हो ही, इसके अतिरिक्त जो जनता से बात जनता की भाषा में करने का हिमायती हो।

युवा पीढ़ी को इस बात की जानकारी भलीभाँति है कि आज देश में ‘पब्लिक कनेक्टिंग’ राजनीतिज्ञ अल्पमत में हैं। आज जनता अपने जिन सांसदों/विधायकों से सीधे संवाद करना चाहती है, अपनी हालबयानी और दशा-स्थिति से अपने जिन जनप्रतिनिधियों को अवगत कराना चाहती है; उनमें से कुछ ही हैं जो इस अपेक्षा अथवा जनांकाक्षा की कद्र करते हैं बाकी सब भगौड़े हैं, चिटफंडी खादीधारी है। नतीजतन, नागरिक-जीवन सम्बन्धी मूलभूत सुविधाओं की पहुँच और प्राप्ति नगण्य है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि से जुड़े ज़बानी भरोसे का लाॅलीपाॅप बाँटते राजनीतिज्ञों की भरमार है; लेकिन कहे को कर के दिखाने भर की हैसियत किसी में नहीं है।

नरेन्द्र मोदी जैसा कि वे दावा करते हैं-इन राजनीतिक घटियागिरियों को वे सदा-सर्वदा के लिए ख़त्म कर देना चाहते हैं। वे जातिवादी तकरीरों से ऊपर उठकर देसी राजनीति करना चाहते हैं। पिछले बरस दिसम्बर में वाराणसी महारैली को सम्बोधित करते हुए उन्होंने एक मजे की बात कही थी-‘‘सत्ता में आया भाइयो और बहनो तो आप सभी के सामने दोबारा उपस्थित होऊंगा और अपना सर ऊँचा कर कहूँगा, चाय बेचने वाला नरेन्द्र मोदी आज वह सबकुछ कर रहा है जो पिछले प्रधानमंत्रियों ने न किया और न ही करना चाहा। यह जो युवा इतनी तादाद में उमड़ी है अब उसे एक अदद नौकरी के लिए फार्म पे फार्म नहीं भरने होंगे; मैंने अपने गुजरात में आॅनलाइन इंटरव्यू कराये और तत्काल परिणाम देकर बड़ी संख्या में युवाओं को नौकरी भी दे दी। यह कांग्रेस जो चुनाव नजदीक आते ही ‘गरीब, गरीब, गरीब....’ का माला जपने लगती है, अब उसकी विदाई तय है। अब जनता को भाषण और आश्वासन नहीं चाहिए; झूठे संकल्प नहीं चाहिए बल्कि सचमुच विकल्प चाहिए। एक ऐसी सरकार चाहिए जिसका दिल धड़के तो जनता के लिए...उसका सीना गर्व से फूले या चैड़ा हो तो अपनी जनता के हित और कल्याण में......नहीं तो मंच से भारत माता का जयजयकार करना, महादेव के नाम की जयजयकारी करना धोखा है, छलावा, झाँसा है...ऐसा मैं मानता हूं। नरेन्द्र मोदी जो कभी ट्रेन में चाय बेचता था आज उसे जनता प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहती है तो भाइयो और बहनो, यह जनता का विवेक है, निर्णय है...मेरे जिम्मे तो सिर्फ कर्तव्य है जिसका मैं पालन करूँगा।’’ 

जनता दिमाग में विवेक रखती है! तमाम लेकिन, किन्तु, परन्तु के बावजूद भारतीय जनता अपनी चेतना में जीवन्त, बेलाग और मुखर है। अतएव, इसके लिए विज्ञापनबाज टपोरियों को ‘उल्लू मत बनाओ’ जैसे बेढंगे और बेढब भाषा में ‘प्रोपेगेण्डा करने की जरूरत नहीं है।

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...