मैंने कल विह्वल मन से यह ई-मेल अपने कुलपति प्रो. लालजी सिंह को भेजा था। लेकिन, न वे आये और न ही उनका कोई संदेशा आया। जो आये वे विभाग के होने के नाते उपस्थित थे या सीधे परिचय होने के कारण। लेकिन, हिन्दी विभाग का हाॅल खचाखच भरा था। अध्यापक और विधार्थियों का जनसमूह इस श्रद्धांजली भेंट में जिस तरह शिरक्त किया, वह वैसे कम नहीं था। फिर भी, आखि़र हम किस बिनाह पर या किस शर्त पर विश्वविधलय से स्वयं को जोड़कर देखें, उसके लिए अपनी हर इच्छा को दांव पर लगा दें, औरों के ढर्रे से अलग हटकर कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करें और अपने विश्वविधालय का नाम ससम्मान विश्व भू-पटल पर दर्ज करायें....यहां तो हमारे जीने पर ही संकट है।
शोक-सन्देश
...............
20/05/2014
12 : 29 PM
प्रति,
परमआदरणीय कुलपति महोदय,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।
महोदय,
मैं, यह सूचना अत्यन्त दुःख के साथ व्यथित मन से आप तक पहुँचा रहा हूँ कि
अपने हिन्दी विभाग(कला संकाय) के मेधावी, यशस्वी और सर्जनात्मक
प्रतिभा-सम्पन्न शोध-छात्र रविशंकर उपाध्याय का निधन गत अपराह्न 3 बजे सर
सुन्दरलाल चिकित्सालय के आई.सी.यू. में हो गया। युवा कवि रविशंकर की
रचनात्मक गतिविधियों एवं उनके सांस्कृतिक-साहित्यिक सक्रियता से यह परिसर
पूर्व-परिचित एवं निबद्ध रहा है। कल उनके निधन से बीएचयू परिसर का
वातावरण काफी आहत और संवेदित भी दिखा। आज दिनांक 20/05/2014 को अपराह्न 3
बजे हम विद्याार्थियों/शोधार्थियों ने हिन्दी विभाग में श्रद्धांजली
कार्यक्रम रखने का प्रस्ताव किया है।
श्रीमान् इस परिसर में हमसब विद्यार्थियों के लिए आपका अभिभावकत्व
महत्त्वपूर्ण है। आपकी उपलब्धियाँ और सफलता हमारे लिए विशेष मायने और
अर्थ रखते हैं। लेकिन, यह घोर निराशाजनक स्थिति है कि आप जैसे संवेदनशील,
योग्य, अनुभवी और गवेषणामुखी व्यक्तित्व के धनी विश्वविद्यालय के कुलपति
से हमारा साहचर्य-सम्पर्क शून्य है। संचार-क्रांति के तमाम विकल्पों की
उपस्थिति के बावजूद आपसी संवाद के सुअवसर हमें नहीं प्राप्त हो पाते हैं।
नतीजतन, वर्तमान अकादमिक-व्यवस्था के प्रति हमारी धारणा उत्तरोत्तर
रूढ़/जड़ होते जाने को विवश है। हम शोधार्थी जिन पर अक्सर शोध सम्बन्धी
दृष्टि, चिन्तन, तर्क, विचार, वैज्ञानिक संकल्पना इत्यादि के
अनुपस्थित/अक्षम होने के आरोप मढ़े जाते हैं; मैं बताना चाहूँगा कि हम
अपने शोध-कार्य की गुणवत्ता एवं स्तरीयता को बनाये रखने के लिए हरसंभव
प्रयत्न करते हैं। शोधार्थी रविशंकर उपाध्याय उन्हीं में से एक थे।
श्रीमान् यदि इस परिसर के मान-प्रतिष्ठा एवं सम्मान को बनाये रखने की
जिम्मेदारी हमारे ऊपर है, तो आपका भी हमारे प्रति उतना ही दायित्व-बोध
एवं कर्तव्य बनता है जिससे हमें सुनियोजित तरीके से वंचित/उपेक्षित रखा
जाता है।
अतः श्रीमान् मैं आशा और उम्मीद भरे शब्दों में आपसे विनम्र आग्रह करता
हूँ कि आप आज की तारीख़ में यदि हमसबों के बीच उपस्थित हों, तो यह हमारे
लिए बड़भाग्य(‘किस्मत’ वाले शब्दार्थ में नहीं) होगा। आप की इस उपस्थिति
से दिवंगत युवा कवि रविशंकर उपाध्याय जी को श्रद्धाजंली भेंट मिलने के
अतिरिक्त हम संकल्पित-समर्पित विद्याथियों-शोधाथियों को भी असीम प्रेरणा
एवं वास्तविक संबल प्राप्त हो सकेंगे।
सादर,
भवदीय,
राजीव रंजन प्रसाद
प्रयोजनमूलक हिन्दी पत्रकारिता,
हिन्दी विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी।
शोक-सन्देश
...............
20/05/2014
12 : 29 PM
प्रति,
परमआदरणीय कुलपति महोदय,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।
महोदय,
मैं, यह सूचना अत्यन्त दुःख के साथ व्यथित मन से आप तक पहुँचा रहा हूँ कि
अपने हिन्दी विभाग(कला संकाय) के मेधावी, यशस्वी और सर्जनात्मक
प्रतिभा-सम्पन्न शोध-छात्र रविशंकर उपाध्याय का निधन गत अपराह्न 3 बजे सर
सुन्दरलाल चिकित्सालय के आई.सी.यू. में हो गया। युवा कवि रविशंकर की
रचनात्मक गतिविधियों एवं उनके सांस्कृतिक-साहित्यिक सक्रियता से यह परिसर
पूर्व-परिचित एवं निबद्ध रहा है। कल उनके निधन से बीएचयू परिसर का
वातावरण काफी आहत और संवेदित भी दिखा। आज दिनांक 20/05/2014 को अपराह्न 3
बजे हम विद्याार्थियों/शोधार्थियों ने हिन्दी विभाग में श्रद्धांजली
कार्यक्रम रखने का प्रस्ताव किया है।
श्रीमान् इस परिसर में हमसब विद्यार्थियों के लिए आपका अभिभावकत्व
महत्त्वपूर्ण है। आपकी उपलब्धियाँ और सफलता हमारे लिए विशेष मायने और
अर्थ रखते हैं। लेकिन, यह घोर निराशाजनक स्थिति है कि आप जैसे संवेदनशील,
योग्य, अनुभवी और गवेषणामुखी व्यक्तित्व के धनी विश्वविद्यालय के कुलपति
से हमारा साहचर्य-सम्पर्क शून्य है। संचार-क्रांति के तमाम विकल्पों की
उपस्थिति के बावजूद आपसी संवाद के सुअवसर हमें नहीं प्राप्त हो पाते हैं।
नतीजतन, वर्तमान अकादमिक-व्यवस्था के प्रति हमारी धारणा उत्तरोत्तर
रूढ़/जड़ होते जाने को विवश है। हम शोधार्थी जिन पर अक्सर शोध सम्बन्धी
दृष्टि, चिन्तन, तर्क, विचार, वैज्ञानिक संकल्पना इत्यादि के
अनुपस्थित/अक्षम होने के आरोप मढ़े जाते हैं; मैं बताना चाहूँगा कि हम
अपने शोध-कार्य की गुणवत्ता एवं स्तरीयता को बनाये रखने के लिए हरसंभव
प्रयत्न करते हैं। शोधार्थी रविशंकर उपाध्याय उन्हीं में से एक थे।
श्रीमान् यदि इस परिसर के मान-प्रतिष्ठा एवं सम्मान को बनाये रखने की
जिम्मेदारी हमारे ऊपर है, तो आपका भी हमारे प्रति उतना ही दायित्व-बोध
एवं कर्तव्य बनता है जिससे हमें सुनियोजित तरीके से वंचित/उपेक्षित रखा
जाता है।
अतः श्रीमान् मैं आशा और उम्मीद भरे शब्दों में आपसे विनम्र आग्रह करता
हूँ कि आप आज की तारीख़ में यदि हमसबों के बीच उपस्थित हों, तो यह हमारे
लिए बड़भाग्य(‘किस्मत’ वाले शब्दार्थ में नहीं) होगा। आप की इस उपस्थिति
से दिवंगत युवा कवि रविशंकर उपाध्याय जी को श्रद्धाजंली भेंट मिलने के
अतिरिक्त हम संकल्पित-समर्पित विद्याथियों-शोधाथियों को भी असीम प्रेरणा
एवं वास्तविक संबल प्राप्त हो सकेंगे।
सादर,
भवदीय,
राजीव रंजन प्रसाद
प्रयोजनमूलक हिन्दी पत्रकारिता,
हिन्दी विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी।
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