Friday, May 6, 2011

असमय सयाने होते किशोरों से चकित अभिभावक





किशोर समझकर उम्र मत पूछिए. कंधे पर स्कूल बैग देख उनकी नादानियत पर हँसना भी मना है. अभिभावक चकित हो सकते हैं, लेकिन ज्यादा देर तक सचाई को अन्धेरे में छुपा रखना भी सही नहीं है. आप विश्वास मानिए कि आपका 12-13 साल का किशोर कण्डोम-प्रयोग से सम्बन्धित सारे विधान जान चुका होगा. विश्वास मानिए, आज के किशोर इतने जानकार हैं कि वात्सायन के ‘कामसूत्र’ पर डाॅक्यूमेन्ट्री फिल्म बना डालें. सहपाठियों का एमएमएस बनाना तो उनके बायें हाथ का खेल है. बालसुलभ मुसकान में कामुकता देख आपको हैरानी हो सकती है और उनकी हरकत के किस्से जान आपके पेशानी पे बल पड़ सकते हैं. पर इन किशोरवय बच्चों के लिए ‘फिकर नाॅट’ शब्द चर्चित अथवा पसंदीदा तकिया कलाम है. माँ भी चोखा ‘आइटम’ है, माल है. वहीं हर जवान लड़की उनकी नज़र में शीला या फिर मुन्नी की किरदार.

किशोर लड़कियाँ भी उतनी ही खुली हुई बिंदास हैं. एक दूसरे के तन-बदन अर्थात फिगर से सम्बन्धित चटपटे जोक्स साथी लड़कों को भेज खुश होती इन लडकियों के लिए आज का ज़माना ‘फुल इन्ज्वाॅयमेन्ट’ का है. इसलिए खुद भी फ्लर्ट करती हैं और दूसरों को फ्लर्ट करने का न्यौता भी देती हैं. इनकी पीड़ा यह है कि कोई इनकी स्कर्ट नहीं खींचता या फिर ‘लालो’, ‘पारो’, ‘छम्मकछल्लो’ कह सड़क चलते नहीं छेड़ता. ये इतनी अल्हड़ हैं कि सबके सामने आँख मार सकती हैं. आइसक्रीम के साथ कौतुक करती हुई उसे साथी लड़कों के अन्तर्वस्त्र में डाल सकती हैं. इन खुशमिज़ाज़ लड़कियों से ईष्या या जलन होना स्वाभाविक है, क्योंकि ये तड़ाका जवाब ही नहीं दे सकती हैं, बल्कि झन्नाटेदार थप्पड़ भी लगा सकती हैं, बेलाग-बेलौस.

कलतक स्कूल की शिक्षिकाएँ जो अक्सर पढ़ाने की रौ में अपना पल्लू या दुपट्टा संभालना भूल जाती थी. आजकल घड़ी-घड़ी उस पर हाथ फेर रही हैं. अचानक नहीं हुआ है यह सबकुछ. बिलावज़ह ही 7वीं-8वीं कक्षा के किशोरों से नहीं शर्माने लगी हैं वे. बल्कि उन्हें सचाई का भान ही नहीं प्रत्यक्ष ज्ञान है कि कक्षा में बैठ मोबाइल पर हाथ फिराता कोई किशोर या किशोरी कब उनके अस्त-व्यस्त या उघड़े बदन का चित्र खिंच डाले और तत्काल इंटरनेट-देवता के महा-समन्दर में सुपुर्द कर दे, कोई ठिकाना नहीं है. गुगल गंगोत्री है जहाँ रोज मंथन होते हैं, कथित 84 करोड़ देवी-देवताओं की योनियों के यात्रा और दर्शन होते हैं. वहाँ जीवन का हर अपूर्ण कोना पूर्ण है. जिन्दगी निसार नहीं सम्पूर्ण है. किशोर इस नए अवतरित आभासी दुनिया में मंजे गोताखोर की तरह गोता लगा रहा है. अभिभावक अपने किशोरवय बच्चों को इस नये तकनीक के आवेग में बहते देख भौचक्क हैं, चकित भी. शायद! यह उनके असमय सयाने होने का लक्षण है जिसे माता-पिता और अभिभावकों द्वारा लक्षित किया जाना भी बेहद जरूरी है.

बाकी सारा....थोड़ा लिखना ज्यादा समझना.

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...