Saturday, May 21, 2011

ब्लॉग ‘इस बार’ को यह कविता सप्रेम भेंट



का गुरु, मोटइबऽ कि अइसन के अइसन रहबऽ?

ल सुन एगो कविता जरका
लिखनी हईं टटका-टटका।

जिन्स कमर में आटे ना तोहरा
टी-शर्ट मारे झख।

कोट-पैन्ट के तऽ हाल न पूछऽ,
पहन लऽ त लाग बतख।

48 किलो वजन बाटे अउर
100 ग्राम बाऽ घलुआ।

पढ़े-लिखे में कलम-घसेटू
हँसेला जे पर कलुआ।

प्रथम श्रेणी में पास करिके
आज तक बाड़ऽ फिसड्डी।

नून-तेल के भाव का जानऽ तू,
घर बैइठल मिले गंजी-चड्डी।

छोड़ऽ बबुआ कलम-मास्टरी
अब करऽ जरका काम।

देह-दुबराई से ना देश सुधरी
चाहे बीती जीवन तमाम।

हा....हा....हा....ही....ही....ही....हू....हू....हू
हे......हे......हे......हो.........हौ.....हौ....हौ....!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

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