Friday, May 13, 2011

प्रार्थना : आतंकी साये के बीच नये सुबह की तलाश

सुबह की रोशनी अभी मजे से क्षितिज पर फैली भी नहीं थी कि पाकिस्तान लहूलुहान हो गया. शुरूआती सूचना के मुताबिक फि़दायीन हमले में 70 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 40 लोग जख़्मी हैं. मरने वालों में ज्यादातर अर्द्धसैनिक बल हैं. पेशावर से 35 किलोमीटर दूर स्थित चरसद्दा शहर में मामूली अंतराल पर हुए दो आत्मघाती विस्फोटों ने शहर के तापमान को इस लू-तपिश के मौसम में सुबह-सुबह ही अंगार बना दिया. यह आत्मघाती विस्फोट चरसद्दा शहर में अवस्थित एफसी किला जो कि अर्द्धसैनिक बलों का ट्रेनिंग सेन्टर है; के पास उस समय घटित हुई जब अर्द्धसैनिक बल के जवान बस में सवार हो रहे थे. उनकी छुट्टियाँ हो चुकी थीं और वे अपने-अपने घर जाने की मौज में मगन थे.


पाकिस्तान में जो आज अभी-अभी घटा है. यह आखीरी या अंतिम आतंकी कार्रवाई नहीं है. ओसामा को मारकर �न्याय हो चुकने� का ढिंढोरा पिट रहे अमरीका को इस पर गौर फरमाने की जरूरत है. वैश्विक राजनीति की कुत्सित चालें जिसका शिकार आम-आदमी है; उसके जन्मदाता खुद अमरीका और पाकिस्तान ही हैं. जहाँ तक मैं सोच पा रहा हँू, इस घटना से आहत सभी हैं, भारी कोफ्त और आवाज़ में ग्लानि सभी की है. कल की तारीख़ में कुछ और बुरा या भयानक घटित न हो, इसके लिए प्रार्थना और दुआ भी सभी के मन में चल रहा है. क्योंकि इस आतंकी कहर ने हर इक शहर को अपनी चपेट में ले लिया है. सुदूर स्थित गाँव-दालान और चबूतरा-चैपाल सभी इस घटना की खुलकर मज़मत करते हैं.


दरअसल, आशंका तो उसी समय दृढ़ हो गई थी जिस समय अमरीका ने ओसामा के मौत की आधिकारिक घोषणा की थी. संभावना व्यक्त की जा रही थी कि ये आतंकी बदले की नीयत से किसी भी बड़ी आतंकी घटना को अंजाम दे सकते हैं. आज पूर्व सोचा सच सामने है. पाकिस्तान ही नहीं भारत भी इस तरह के खूरेंजी हमलों का कई दफा शिकार हो चुका है जिसमें न जाने कितनी जानें गई हैं, कितने जख़्मी हुए हैं, और कितने लूल-अपंग आज भी अन्धेरे की काल-कोठरी में कैद हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह हमला आतंकियों को पनाह और प्रश्रय देने का परिणाम है जिसमें पाकिस्तान की संलिप्तता जगजाहिर है. भारत के खिलााफ पाकिस्तान ने शत्रुतापूर्ण साजिश रचने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ा है. मुंबई ब्लास्ट से लेकर मुंबई ताज प्रकरण के बीच उसने भारत को कई ऐसे आतंकी चोट दिए हैं जिसे कुरेदने पर पुराना जख़्म आज भी और गहरा हो जाता है. कह सकते हैं कि जिस जाल को पाकिस्तान ने भारत को फांसने के लिए बुना, आज बदली हुई परिस्थिति में वह खुद उसी में उलझ गया है. अमरीका भी इसी नक्शेकदम का राही है. कहा तो यह भी जाता है कि विश्वपटल पर अमरीका ने ही ओसामा जैसे आतंकी को गढ़ा, उभारा और अंत में अपने ही हाथों उसका शिकार भी कर डाला.


खैर, मानवीयता को भेदती और शत्रुता के वेष में आमोख़ास के चेहरे पर शिकन पैदा करती यह घटना पूरी दुनिया के सामने जो भयावह तस्वीर पेश कर रही है. उस पर गहन मंथन की जरूरत है. यह दुर्निवार घड़ी है जिसके बारे में थमकर सोचने की जरूरत है. दुनिया का भूगोल आज जिस तरह चरमपंथियों के निशाने पर हैं. लोग हताहत हो रहे हैं. बनी-बनायी दुनिया उजड़ रही हैं. छोटे-छोटे बच्चें भय और ख़ौफ के साये में सिकुड़ रहे हैं. क्या यह क्षम्य है? निरपराध लोग चाहे लैटिन अमरीका में बेमौत मारे जाएं या कि एशिया-यूरोप में; लहू का कतरा गोरा या काला नहीं होता है. हमें उन सभी की पुरजोर मुख़ालफत करनी चाहिए जो हमारी दुनिया-जहान को दोजख़ में तब्दील करने पर आमदा है. हम मनुष्य हैं, खुदा की बंदगी करने वाले, रसूल से फरियाद करने वाले, ईसा-मूसा की नेकनियती पर बिछने वाले या फिर राम-रहीम और बुद्ध-महावीर की चरण-वंदना करने वाले. हमारी तहज़ीब, संस्कृति, रीति और रवायत कितनी भी अलग क्यों न हो? हम इंसानियत को चाहने वाले अमनपसंद लोग हैं. हमें अपने नौनिहालों के लिए ऐसी आबाद दुनिया की ख़्वाहियश हैं जहाँ मुल्क की सरहद और चैहद्दियाँ तो मौजूद हों लेकिन नफरत, ईष्र्या, कट्टरता, साम्प्रदायिकता और खूनी रंजिश का बसेरा न हो?


अतः आइए, इस आतंकी ख़ौफ के सिलसिले को यहीं ख़त्म करे. बेहतर कल के लिए आशाओं की दीप प्रज्ज्वलित करें. आतंकी साये के बीच यह एक किस्म की नये सुबह की तलाश है. उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि अच्छा चाहने वाले के साथ बुरा एक बार, दो बार या कुछेक अधिक बार हो सकता है; लेकिन बार-बार या हमेशा बुरा ही हो...यह हरगिज़ संभव नहीं है.

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...