Tuesday, May 10, 2011

तितली: आज़ाद बुलबुल

तितली: आज़ाद बुलबुल: "आओ नन्हीं बुलबुल आओ मीठा मीठा गीत सुनाओ पिंजरा सोने का बना दूँ हीरे उसमें लाख जड़ा दूँ फल मीठे दूंगी खाने को ठंडा ठंडा जल पीने ..."


जानताड़ू दीदी, इ कविता जब हम आपन बबुआ देवरंजन के सुनाइब, त उ खूब खुश होई. अइसन कविता एहू से निक लागेला काहे कि एकर तार मन के डोर से जुड़ जाला. चलऽ 2 महीना तक हम देखब का लिखताड़ू तू हमरा देवरंजन के उमिर के लइकन खातिर.

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...