Monday, May 2, 2011

ओसामा की मौत: रहस्य की पटकथा

‘‘ओबामा-दुनिया सुरक्षित घोषित’’

‘‘ओबामा-फौजियों के हाथों ओसामा की हत्या’’


उक्त पंक्तियाँ तथ्य और आधारहीन हैं या नहीं, इसकी पड़ताल आवश्यक है. मशहूर अमरीकी पत्रकार जाॅन रीड की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है-‘‘दस दिन जब दुनिया हिल उठी.’’ आज तारीख 2 मई; जब जनमाध्यमों ने यह ख़बर देनी शुरू की कि ‘ओसामा बिन लादेन अमरीकी हमले में मारा गया’, तो दुनिया तनिक भी हिली-डुली नहीं. अमरीका को छोड़ दुनिया भर में जश्न का माहौल भी कम ही देखने को मिला. यह जरूर है कि अमरीका से आयातित इन ख़बरों को दुनिया ने बड़े ही चाव से पढ़ा, सुना और घंटों टेलीविज़न पर देखा. पर असर में वह कुछ ज्यादा नवीन प्रभाव नहीं छोड़ सकी हंै. जबकि अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा मान रहे हैं कि दुनिया पिछले कल की तुलना में आज ज्यादा सुकुनबस्त हैं. विशिष्ट अभियान के तहत ओसामा बिन लादेन को किसी दूसरे मुल्क की सरज़मीं पर मार गिराना, अवश्य ही टेढ़ी खीर है जिसे ओबामा अमरीका की एक बड़ी जीत और अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं।

ओबामा के सम्बोधन से अमरीकी समाज में जश्न का माहौल तारी है. लोग भारी मात्रा में ‘जीरो ग्राउंड’ के इर्द-गिर्द जुटने लगे हैं. लोगों के जेहन में वह ख़ौफनाक मंजर एक बार फिर से नमूदार हुआ है जिसे अमरीकी मतानुसार ओसामा बिन लादेन के इशारे पर एक दशक पीछे अंजाम दिया गया था. ‘वल्र्ड ट्रेड सेन्टर’ नाम से लोकप्रिय अमरीका की दो बहुमंजिली इमारत 11 सितम्बर 2001 को उस वक्त ध्वस्त हो गईं थी जब आतंकवादियों ने दो विमानों को अपहरण के पश्चात अचानक इन इमारतों से टकरा दिया था. उस घड़ी इस हमले में तकरीबन 3000 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी.

9/11 की इस ख़ौफनाक घटना के बाद से ही अलकायदा प्रमुख ओसामा अमरीकी सेना के रडार पर था. लेकिन वह अमरीका और गठबंधन सेना को चकमा देने में हमेशा सफल रहा. 2.5 करोड़ डाॅलर का ईनामी ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के निकट ऐबटाबाद में ऐसे समय में मारा गया है जब दुनिया की निगाह में अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा का कद नित घट रहा है और छवि धूमिल हो रही है। लीबिया में अपने युद्धक पंजे से लोकतंत्र-विरोधी कार्रवाईयों को अंजाम दे रहे अमरीका की विश्वभर में जिस ढंग से तीखी आलोचना जारी है; उसके मद्देनज़र यह ख़बर ‘प्लाॅट’ किया जाना इस बात का संकेत है कि अमरीकी इच्छाशक्ति में तेजी से गिरावट होते जा रहे हैं।

माॅस्ट वांटेड आतंकवादी ओसामा से सम्बन्धित सुराग ओबामा-सेना और उसके खुफिया कारिन्दों को पिछले साल अगस्त माह में ही मिल चुके थे. लेकिन अमरीका सीधी कार्रवाई से कतराता रहा. यही नहीं उसने पाक सरकार को भी अपने इस गुप्त अभियान के बारे में भनक नहीं लगने दी. महीनों इन्तजार के पश्चात अमरीका द्वारा अचानक इस सुनियोजित हमले को एक घन्टे के भीतर अंजाम दे डालना, कई तरह के सवालों को जन्म देता है. हाल के दिनों में लीबिया में ओबामा की युद्धक सेना द्वारा ताबड़तोड़ हमला किया जाना अमरीका की लोकतांत्रिक पक्षधरता और वैश्विक जवाबदेही जैसे लोक-अधिकारों को पलीता लगाता है।

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा यह कहा जाना, तो और भी हैरतअंगेज है कि-‘न्याय हो चुका है(justice has be done).’ सदैव स्वयं को वैश्विक न्यायमूर्ति की भूमिका में रखकर देखने वाला अमरीका अक्सर यह भूल जाता है कि उसके कथित न्याय से दुनिया में आतंक, खौफ और भय का वातावरण ज्यादा गाढ़ा हुआ है. सद्दाम हुसैन को रासायनिक हथियार रखने के आरोप में नेस्तानाबूद कर चुका अमरीका आज वहाँ की जनता से कैसा न्याय और सलूक कर रहा है, यह सचाई पर्दानशीं नहीं है. हाल में लीबिया में उसके ‘हाथी पाँव’ की धमक क्या न्याय कर रही है; इस तथ्य की जानकारी भी सारी दुनिया को लग चुकी है. मानवता का स्वयंघोषित प्रहरी अपने लक्षित प्रयासों से क्या हासिल करने ख़ातिर बेकरार है. इस सचाई को भविष्य में महाशक्तिमान बनने का आकांक्षी भारत भले देर-सवेर स्वीकार करे, किंतु सारी दुनिया अमरीकी मंशा से लगभग-लगभग परिचित हो चुकी है.

खैर, जल्द ही सचाई सबके सामने होगी, क्योंकि हालिया दौर में किसी सूचना को काफी देर तक पचाए रखना अथवा सेंसर करना मुश्किल है. देर-सवेर जब भी इस घटना की असली परत खुलेगी, न केवल अमरीकी सेना और ओबामा शासन बेनकाब होंगे; बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी ओसामा बिन लादेन को अपनी सरज़मी पर पनाह देने सम्बन्धी रहस्यों से पर्दा हटाने वास्ते बाध्य होगा। ऐसे में अमरीकी आतंकवाद निरोध और गृह सुरक्षा मामलों के उपराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जाॅन ब्रेनन का कहना तर्कसंगत है कि यह नहीं माना जा सकता कि लादेन का पाकिस्तान में कोई सहयोगी तंत्र नहीं था.

1 comment:

डा० अमर कुमार said...

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लीक से हट कर किया गया बेहद सधा हुआ आकलन !

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...