Tuesday, May 10, 2011

का लिखताड़ जा आपन ब्लाॅग पर, आवतानि देखे...!




काहे त मन जहुआइल बा. लगऽता बड़ी दिन्हा से घूम-फिर नइखे भइल न! ऐही से मनवा में हमार सब तमाशा हो रहल बा. अपना यूनिवर्सिटी में त पेड़ पर आम के टिकोरा लागल देख मन ईंटा-पत्थर चलावे के करता. कबो अधिया रतिया में पुरवा में लस्सी पीएला मन करे लागता. आईआईटी और मेडिकल के का कहल जाव आर्ट्स और सोशलो साइंस के लइकन सब खूब अंग्रेजी नाम वाला ठंडा पिअताड़न जा. देर राति के सड़क किनारे खड़ा होइके आपन छाति जलाव ताड़न जा सिगरेट पी-पी के.


देखा-देखी ही सही आजतक खूब गिटिर-पिटिर कइनी हमहू बैठी के कंप्यूटर पर. ई-मुआ कंप्यूटर हऽ. आफत के पुडि़या भी हऽ. ना खाली सामने रखल चाय के रंग बदल देवेला, बल्कि हमरा से कोसो दूर रह वाली हमार औरतियो के नराज कर देवेला. उनकर हमार खटर-पटर से नफरत हऽ. अब उनका के हम का बताइ की ज्यादा पढ़निहार भइला के फायदा बा, तो ओकरा से ज्यादा नुकसानो बउये ढेरो.


सो चल भईल छुट्टी. राजू बबुआ के यात्रा शुरू, अब हम न! बताइब कि कहाँ का पक रहल बा? कवन ब्लाॅगवा पर कव चीज रचल जा रहल बा? दिदिया-भैया लोगन के संसार में के-के का महत्त्व और जगह बनवले बा? कइसन-कइसन कमेन्टवा देइके मन जुड़वले बा? अब इ यात्रा में निकल ही गइनी त फिर फलतुआ में ‘इस बार’ के बारे में बार-बार का सोचेला बा? सारा बतिया बखानब हम एही जगिहा से न!


त भईया लोगन और बहिनी लोगन, बाबू-चाचा, माई और चाची लोगन भी अगर कंप्यूटर से दोस्ती-यारी कर लेले होइ त, उहो लोगन आईं जा, मिल-बहुरि के चलि जा ब्लाॅग ‘इस बार’ के ब्लाॅग यात्रा-पर. इ यात्रा जब ले थमी, तब ले जुलाई शुरू हो जाई...पानी टिपिके लागि...और हमनि के तब तलक ले हरिया गइल रहब जा.

आज ले खड़ी हिन्दी भइल बंद. पीएच0डी0 करतानि त एकर का मतलब, सगरो घड़ी हिन्दीए बोलब. कोई हमार ठिका लेले बा थोडे....,

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...