चन्द्रसेनजीत मिश्र
एक बीज को चाहिए
अंकुरित होने के लिए
मिट्टी और पानी।
वह पेड़ों पर लगे रहकर
नहीं बन सकता एक पौधा।
रोका गया उसे यदि
पेड़ से गिरने से
मिट्टी से मिलने से
तो सड़ जाएगा वह।
रोको नहीं उसे
मिट्टी में मिल जाने दो।
पड़ने दो कुछ पानी के छिंटे
टूटने दो जरा उसे
पौधा तो बन जाने दो।
करने दो संघर्ष जरा
मिट्टी-पानी से सनने दो।
जब वह लड़-भिड़ कर बाहर निकलेगा
तो वही बीज एक दिन
विशाल वृक्ष बन कर उभरेगा।
(युवाकवि चन्द्रसेनजीत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रयोजनमूलक हिन्दी(पत्रकारिता) के स्नातकोत्तर के विद्यार्थी हैं। अंतस की हलचल को अपनी दृष्टि, अनुभव और संवेदना की धरातल पर परखते हुए उसे शब्दों में ढालने का उनका प्रयास अनोखा है, चाहे यदा-कदा ही सही। ब्लाॅग ‘इस बार’ में पढि़ए उनकी कविता ‘वृक्ष बनता है बीज एक दिन’)
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