Tuesday, May 10, 2011
रंग जिंदगी के
बढि़या लिखले बाड़ऽ तू आपन संस्मरण. गंवउन के लोग के गंवार कहे के चलन भले होखे. जितना प्यार रिश्तन में गांव-ज्वार में बा ओकर रति भर अंश ना मिलिहे शहरवन में. अपनापा जेतना गांव में आजो बाटे. परिवार में रचल-बसल बा मेल-बहोर आजो खूब झोंटा-झोंटी, लड़ाई-तकरार, गाली-गलौज होखै के बादो में. उ देख के गर्व होला कि हम गांव के बिटवा हनी.
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!
--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...
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यह आलेख अपने उन विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत है जिन्हें हम किसी विषय, काल अथवा सन्दर्भ विशेष के बारे में पढ़ना, लिखना एवं गंभीरतापूर्वक स...
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तोड़ती पत्थर ------------- वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तल...
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1 comment:
होना भी चाहिए गर्व गाँव से जुड़े होने का...... कम शब्दों में कितने गहरे भाव.....
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चैतन्य के ब्लॉग पर आने का आभार .....
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